मध्य प्रदेश के इतिहास मे साहित्यक परिदृश्य की बात करे तो भारत मे हुए साहित्यकारों मे मध्य प्रदेश की एक अलग ही पहचान है यहा महाकवि कालिदास, भर्तृहरि, महाकवि बाणभट्ट, भवभूति, कवि केशवदास, भूषण , माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान इत्यादि महान कवि मध्य प्रदेश में हुए
महाकवि कालिदास
संस्कृत भाषा के महान कवि कालिदास कवि होने के साथ-साथ एक नाटककार भी थे। संगीत उनके द्वारा रचित साहित्य का प्रमुख अंग हैं। और रस सृजन करने मे उनकी कोई उपमा नहीं है।
महाकवि कालिदास अपनी जिस कृति से प्रसिद्धि मिली वह उनका एक नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम जिसका विश्व की अनेक भाषाओं मे अनुवाद किया जा चुका हैं।
उनका संपूर्ण जीवन शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने मे गुजरा है इस अंदाज इससे लगाया जा सकता है। की उनके द्वारा रचित महाकाव्य, खण्ड काव्य, और नाटक मे साहित्यक झलक अलग दिखती हैं।
कालिदास द्वारा रचित महाकाव्य
मेघदूतम – यह एक गीति काव्य है। इसमे विरह से पीड़ित यक्ष और उसकी प्रीतम के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया गया है इसे वियोग रस का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है।
ऋतुसहारम् – इसमे 6 वर्षा ऋतु का वर्णन किया गया है
कालिदास द्वारा रचित नाटक
मालविकाग्निमित्रम् – यह कालिदास की सबसे पहली रचना हैें। इसमे अग्निमित्र और उनकी प्रियतमा मालविका की प्रणय कथा के बारे मे बताया गया है।
अभिज्ञान शाकुंतलम- यह कालिदास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। जिसका युरोपीय भाषाओं मे भी अनुवाद किया गया है। इसमे राजा दुष्यंत और शकुंतला के परित्याग और उनके पुनःमिलन के बारे मे दिया गया।
विक्रमोर्शीयम् – यह रहस्यों-भरा नाटक ग्रंथ है । इसमें धरती के राजा पुरुरवा व इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी की प्रेम कथा है
इसके अलावा चंडिका दंडक, कुन्तेश्वर दौत्य, कल्याणस्तव, अबास्तव चर्चास्तव, ज्योतिर्विदाभरण, दुर्घटकाव्य, नलोदय, नवरत्नमाला, पुष्प बाणलिवास, रत्नकोष, मकरंदस्तव, महापअपटक, राक्षसकाव्य, श्रृंगारतिलक, श्रृंगार रसाष्टक,. श्रृंगार सारकाव्य, सेतुबंध, लक्ष्मीस्तव आदि भी उनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ है
कालिदास जी के जन्म के बारे मे इतिहास मे कोई जानकरी उपलब्ध नहीं है। परंतु विद्वान उन्हें उज्जैन निवासी गुप्त वंश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के 9 रत्नों मे से एक मानते है। कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है।
महाकवि कालिदास के जन्म स्थान और जन्मतिथि के सम्बन्ध में हमारा इतिहास मौन है ।
भर्तृहरि
- इनके (नीति शतक श्रृंगार शतक वैराग्य शतक) उपदेशात्मक कहानियां भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती है |
- प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक है ।
- महाराजा भर्तृहरि संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान एवं प्रसिद्ध कवि होने के साथ ही एक विशाल राज्य के राजा थे ।
- भर्तृहरि के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि वे उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई और गोरखनाथ के शिष्य थे ।म.प्र. के उज्जैन को उनकी जन्मस्थली, उत्तरप्रदेश के चुनार को साधना स्थली तथा राजस्थान के सरिस्का को उनकी समाधि स्थली माना जाता है ।
- उज्जैन के गढकालिका मंदिर के समीप स्थित राजा भर्तहरि की गुफाएँ उनकी योग साधना को दर्शाती है |
- उनकी रचनाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण उनके द्वारा लिखे गये त्रि-शतक नीति शतक, श्रृंगार तथा वैराग्य शतक है।
- ये तीनों शतक मानवीय जीवन में भोगवाद का विरोध करते हैं और जीवन को सुखमय बनाने के लिये मार्गदर्शक का कार्य करते हैं ।
- भर्तहरि का जन्मकाल भी प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है।
भवभूति
- संस्कृत के इस मूर्धन्य रूपककार का जन्म दक्षिण प्रदेश के पद्माकर नामक स्थान पर एक वेदों के ज्ञाता विद्वान परिवार में हुआ था।
- उनका वास्तविक नाम श्रीकंठ था उनके पिता का नाम नीलकंठ तथा माता का नाम जातकरणी था
- वे कन्नौज के शासक यशोवर्मन के दरबारी कवि रहे |
- भवभूति को भारतीय मिल्टन कहा जाता है
- ज्ञाननिधि के शिष्य भवभूति ने तीन प्रमुख संस्कृत नाटकों की रचना की
- मालती माधव, महावीर चरित तथा उत्तर रामचरित रामचरित (प्रथम दुःखान्त नाटक) ।
महाकवि बाणभट्ट
महाकवि बाणभट्ट कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की राजधानी थी उनके द्वारा रचित कादंबरी उपन्यास जो कि दुनिया का पहला उपन्यास था
महाकवि बाणभट्ट को हर्षवर्धन ने वश्यवाणी कवि चक्रवर्ती की उपाधि दी।
इनके द्वारा लिखित हर्षचरित और कादंबरी विशेष उल्लेखनीय है
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य ग्रंथ – मुकुटपंडित ,चंडीशतक,पार्वतीपरिणय आदि हैं
उनकी इस प्रकृति चित्रण के कारण उनको साहित्य का वनांचल केसरी कहा जाता है
कवि केशवदास
केशवदास का संबंध उस युग से है जिसे साहित्य और अन्य कलाओं के विकास एवं सांस्कृतिक सामंजस्य की दृष्टी से मध्यकाल का स्वर्णयुग कहा जाता है ।
विभिन्न मतों के बावजूद संवत 1618 को केशव का जन्म माना जा सकता है । इस मत का पोषण श्रीगौरीशंकर द्विवेदी को उनके वंशधरों से प्राप्त एक दोहे से भी होता है
“संवत् द्वादश षटू सुभग सोदह से मधुमास, तब तक केसव को जनम नगर आड़छे वास“
केशवदास हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के प्रथम आचार्य तथा महाकवि थे
केशवदास का जन्म संवत 1612 (सन् 1555) में ओरछा में सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था | पितामह पंडित कृष्ण दत्त एवं पिता काशीनाथ संस्कृत के विद्वान थे।
ये ओरछा नरेश इन्द्रजीतसिंह के दरबार में राजकवि के पद पर और राजगुरु के रूप में प्रतिष्ठित थे । इनकी मृत्यु सम्वत 1674 में हुई ।
मुख्य रचनाएँ-(1) मुक्तक काव्यरसिक प्रिया, नखशिख वर्णन, कविप्रिया । (2) प्रशस्ति काव्यरतन बावनी, वीरसिंहदेव चरित, जहॉगीर-जस-चंद्रिका ॥ (3) अन्य काव्यरामचंद्रिका, बारहमासा, छन्दमाला, विज्ञान, गीता आदि।
उनकी कविता दुरुह और क्लिष्ट होने के कारण उन्हें ‘कठिन काव्य का प्रेत! कहा जाता है |
कवि पद्माकर भट्ट
पद्माकर भट्ट का जन्म 1753 में हुआ |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार इनका जन्म बाँदा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था, जबकि प. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र इनका जन्म सागर (मध्य प्रदेश) मानते हैं ।
सागर में तालाब-घाट पर पदमाकर की मूर्ति स्थापित है | गंगा की स्तुति में अपने जीवन काल की अंतिम काव्य रचना गंगा लहरी लिख कर कानपुर में गंगा किनांरे उनका निधन हुआ ।
इनके पिता का नाम मोहनलाल भट्ट था | 80 वर्ष की आयु भोगकर सन् 1833 में कानपुर में गंगा तट पर इन्होंने अपना शरीर छोड़ा ।
पद्माकर ने अनेक ग्रंथों की रचना की जिन्हें तीन श्रेणियों में बाँठ सकते हैं
(क) श्रृंगार काव्य
1 पद्माभरण
2 जगत विनोद
3 अलीजाह प्रकाश
(ख) प्रशस्ति काव्य
1 हिम्मत बहादुर
2 विरुदावली
3 प्रतापसिंह विरूदावली
(ग) भक्ति वैराग्य काव्य
1 प्रबोध पचासा
2 गंगा लहरी
3 यमुना लहरी
4 राम – रसायन
5 राजनीति की वचनिका
6 कवि पच्चीसी।
महाकवि पद्माकर भट्ट रीतिकाव्य के उत्कृष्ट ज्ञाता व रससिद्ध कवि थे ।
कवि भूषण
कानपुर जिले में तिकवापुर नाम (वर्तमान में टिकमापुर) का ग्राम बताया जाता है । कहते हैं कि महाराज छत्रसाल ने इनकी पालकी में अपना कंधा लगाया था जिस पर इन्होंने कहा था-सिवा को बखानौ कि बखानौ छत्रसाल को ।ऐसा प्रसिद्ध है कि इन्हें एक छंद पर शिवाजी से लाखों रुपये मिले ।
हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन कवियों में प्रमुख स्थान रखने वाले भूषण का जन्म 1613 सन् में कानपुर के निकट तिगवापुर नामक गाँव में हुआ | इनके पिता का नाम पण्डित रत्नाकर त्रिपाठी था ।
भूषण का वास्तविक नाम अज्ञात है उपनाम जठाशंकर था, भूषण तो उनकी उपाधि है जो इन्हें चित्रकूट के राजा रुद्रदेव सोलंकी ने दी थी | भूषण की मृत्यु सन् 1715 के आस-पास हुई |
भूषण द्वारा रचित तीन काव्य ग्रंथ है शिवराज भूषण, शिवा बावनी और छत्रसाल दशक |
उनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ भूषण, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास तथा भूषण हजारा भी है।
शिवाबावनी में छत्रपति शिवाजी के शौर्य की ओजस्वी आख्यान है ! शिवराज भूषण रीतिकालीन अंकारवादी और लक्षण ग्रंथ रचना की प्रवृत्ति से प्रभावित ग्रंथ है ।
छत्रसाल दशक में वीर छत्रसाल के पराक्रम, वीरता, युद्ध कौशल आदि की यशोगाथा है ।
इनकी रचनाओं की भाषा मिश्रित अतिश्योक्ति पूर्ण है परन्तु उसमें भाव व्यंजना की अपार शक्ति निहित है।
माखनलाल चतुर्वेदी
एक ‘भारतीय आत्मा’ के रूप में पहचाने जाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 को म.प्र. के होशंगाबाद जिले के बाबई गाँव में हुआ था ।
उनके पिता श्री नन्दलाल चतुर्वेदी एक शिक्षक थे |
अप्रैल,1913 में खंडवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका प्रभा का प्रकाशन आरंभ किया । जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा गया।
1943 में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा ‘देव पुरस्कार’ माखनलालजी को ‘हिम किरीटिनी’ पर दिया गया था।
पुष्प की अभिलाषा और अमर राष्ट्र जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डिलिट की मानद उपाधि से विभूषित किया।
1963 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से अलंकृत किया ।
उनके काव्य संग्रह हिमतंरगिणी के लिये उन्हें 1955 में हिन्दी के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनका उपनाम एक भारतीय आत्मा है।
राष्ट्रीयता माखन लाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा है।
चतुर्वेदी जी का पत्रकारिता जीवन खण्डवा में ‘प्रभा’ के सम्पादन से प्रारम्भ हुआ और उन्होंने ‘प्रताप’ तथा ‘कर्मवीर’ पत्रों का भी सम्पादन किया |
वे गाँधीजी से प्रभावित थे | उन्होंने 1120 के असहयोग आंदोलन में, भाग लिया और अनेक जेल यात्राएँ की ।
इनका देहावसान 30 जनवरी, 1968 को हुआ ।
माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएँ
•हिमकिरीटनी,
•.हिमतरंगिनी
• माता
• समर्पण
• युगचरण
• वेणुलोगूँजै
• धरा
• वीजरी
इसके अतिरिक्त कृष्ण-अर्जुन युद्ध उनका प्रश्निद्ध नाटक है ‘साहित्य देवता” उनका गद्य गीत है तथा “बनवासी’ व पुष्प की अभिलाषा उनका कविता संग्रह है।
राष्ट्रीय काव्यधारा के लेखक गंभीर चिंतक निर्भीक पत्रकार, स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूत ।
सुभद्रा कुमारी चौहान
झाँसी की रानी को अपनी काव्य धारा के माध्यम से जन नायिका बना देने वाली आधुनिक काल की राष्ट्रीय भाव व्यंजना की कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त,1904 में प्रयाग के निहालपुर में एक सम्पन्न ठाकुर परिवार में हुआ था ।
वे छायावादी युग की कवयित्रियों में से एक है। उन्होंने बिखरे मोती’ तथा ‘उन्मादिनी’ दोनों कहानी संग्रहों में भारतीय मध्यमवर्ग के परिवारों का जीवन्त चित्रण किया है।
इसमें उन्होंने समाज की समस्याओं और प्रश्नों को रेखांकित करने का भी महत्वपूर्ण कार्य किया है।
पिता का नाम श्री रामनाथसिंह था।
विवाह खण्डवा निवासी ठाकुर लक्ष्मणसिंह के साथ हुआ।
1921 में गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थी।
‘बिखरे मोती’ उनका पहला कहानी संग्रह है । कविता संग्रह-मुकुल, त्रिधारा, प्रसिद्ध पंक्तियाँ है जीवनी मिला तेज से तेज।
गॉधीजी के आह्वान पर कांग्रेस में शामिल हुई तथा अपने पति के साथ असहयोग आन्दोलन में भाग लिया
15 फरवरी सन् 1948 में बसंत पंचमी को एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया ।
मुख्य रचनाएँ –
काव्य संग्रह-
त्रिधारा,मुकुल, झाँसी की रानी, वीरों का कैसा हो बसंत ।
कहानी संग्रह
बिखरे मोती, उन्मादिनी |
बाल साहित्य
सभा के खेल, सीधे-साधे चित्र |
गजानन माधव मुक्तिबोध
गजानन माधव मुक्तिबोध का प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कवियों में महत्वपूर्ण स्थान है ।
मुक्तिबोध का जन्म 14 नवम्बर, 1917 को श्योपुर जिले में हुआ था |
11 सितम्बर, 1964 को दिल्ली में मृत्यु हो गई ।
उन्हें प्रतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना
इंदौर के कॉलेज से सन 1938 में बी.ए. करके शिक्षा सदन में अध्यापक हो गए
मुक्तिबोध ने गद्य और पद्य दोनों में रचनाएँ की उनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है
काव्य संग्रह– चाँद का मुँह टेड़ा है, तारसप्तक, भूरि-भूरि खाक-धूल,सतह से उठता आदमी, चम्बल की छाती, भूल -गलती, शक्ति के ।
कहानी संग्रह – काठ का सपना, ब्रह्राक्षस,ऑँधेरे में ।
उपन्यास -विपात्र।
निबन्ध संग्रह – एक साहित्यिक की डायरी, कामायनी एक पुनर्विचार
बालकृष्ण शर्मा नवीन
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का जन्म म.प्र. के शाजापुर जिले में मयाना नामक ग्राम में 8 दिसम्बर, 1897 को हुआ था।
आप गाँधीजी के विचारों से प्रभावित थे ।
स्वतंत्रता के पश्चात् उन्हें संविधान निर्मात्री परिषद् का सदस्य भी बनाया गया |
1952 से अपने अंतिम दिनों तक नवीन जी लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्य भी रहे |
आपका देहावसान दिल्ली में 29 अप्रैल, 1960 को हुआ | .
उनकी प्रमुख रचनाएं
महाकाव्य – उर्मिला 1957 में प्रकाशित
‘खण्ड काव्य – प्राणर्पण (1962)
काव्य संकलन – कुमकुम, अपलक, रश्मि रेखा, क्वासी, विनोबा स्तवन, हम विषपायी जन्म के ।
उर्मिला महाकाव्य ने बालकृष्ण शर्मा नवीन जी को विशेष ख्याति प्रदान की है।
भवानी प्रसाद मिश्र
भवानीप्रसाद मिश्र का जन्म 23 मार्च, 1913 में म.प्र. के होशंगाबाद के टिगरिया ग्राम में हुआ |
उन्होंने गाँधीजी के विचारों से प्रभावित होकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और कारावास भोगा।
उन्होंने वर्धा को निवास स्थान बनाया जहाँ 1985 में उनकी मृत्यु हो गयी ।
उनकी रचनाएं
गाँधी पंचशती, गीत फरोश, दूसरा साप्तक, चकित है दुःख, अँधेरी कविताएँ, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, अनाम तुम आते हो, सन्नाटा, इदमं मम, नीली रेखा तक, तूस की आग आदि प्रमुख है |
1981-82 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के संस्थान सम्मान सम्मानित हुए।
1983 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।
हरिशंकर परसाई
हिन्दी व्यंग्य के प्रवर्तक और पितामह हरिशंकर ‘परसाई” का जन्म 22 अगस्त, 1924 को होशंगाबाद जिले के जमानी नामक ग्राम मैं हुआ था
जबलपुर से वसुधा नामक पत्रिका प्रकाशित की और देश के कई समाचारपत्रों, पत्रिकाओं में उनकी व्यंग्य रचनाएँ प्रकाशित होती रही ।
10 अगस्त, 1995 को उनका देहांत हो गया ।
सम्मान साहित्य अकादमी पुरस्कार, शिक्षा सम्मान (मध्य प्रदेश शासन) ,शरद जोशी सम्मान
रचनाएँ – तठ की खोज, बोलती रेखाएँ, रानी नागफनी की कहानी, एक लड़की पाँच दीवाने, हँसते हैं रोते हैं, सुन भाई साधों, बात की बात, बेईमानी की परत, ज्वाला और बल, निठल्ले की डायरी, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है, भूत के पाँव पीछे, जैसे उनके दिन फिरे तब की बात और थी, पगडइंडियों का जमाना, वैष्णव की फिसलन:, तुलसीदास चन्दन घिसे, ठिठुरता हुआ स्वतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर आदि उनकी रचनाएँ हैं ।
वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं, जिन्होंने व्यंग्य को “विधा का दर्जा दिलवाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परिधि से निकालकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा |
परसाई जी जबलपुर और रायपुर से देशबंधु मै पूछिए परसाई से नामक स्तंभ से पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे ।
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास-रानी नागफनी कीं कहानी, तठ की खोज, ज़्वाला और जल ।
कहानी-संग्रह – हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोला राम का ‘जीव।
संस्मरण-तिरछी रेखाएँ
लेख-संग्रह–
तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी-अपनी बीमारी, प्रेमचंद के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर ।
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन
जन्म 5 अगस्त, 1915 को उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के झगेरपुर मैं हुआ था | बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी मैं विश्वविद्यालय नै उन्हें 1950 में डीलिट के साथ भी सम्मानित किया।
सम्मान-
साहित्य अकादमी पुरस्कार-भारत भारती पुरस्कार
डॉ. सुमन ने अपना अध्यापकीय जीवन वर्ष 1942 में विक्टोरिया कॉलेज (ग्वालियर) में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक के रूप में शुरू किया।
वर्ष 1968-78 तक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति के रूप में कार्य किया।
उज्जैन में 27 नवम्बर, 2002 को हिन्दी साहित्य का यह उपासक शून्य में विलीन हो गया।
भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण एवं म.प्र. सरकार द्वारा शिखर सम्मान से सम्मानित किया |
काव्य संग्रह डॉ. सुमन की सृजन यात्रा इस प्रकार है –
(1)हिल्लोले
(2) जीवन के गान
(3) प्रलय सृजन
(4) विश्वास बढ़ता ही गया
(5) पर आँखें नहीं भरी
(6) विंध्य हिमालय
(7) मिट्टी की बारात
(8) वाणी की व्यथा
(9) कठे अंगूठे सी वंदन वारे नीटक-प्रकृति
शरद जोशी
शरद जोशी का जन्म 21 मई, 1931 को उज्जैन में हुआ ।
उनकी रचनाएँ दैनिक नई दुनिया के परिक्रमा नामक स्तम्भ में लम्बे समय तक (1958) प्रकाशित हुई ।
उन्हें भारत सरकार ने 1983 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया | सितम्बर 1991 को जोशीजी का देहावसान हुआ ।
व्यंग्य निबंध
परिक्रमा, फिर किसी बहाने, जीव पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, पिछले दिनों, यथा सम्भव,
नाटक
अंधों का हाथी, एक था गधा
कहानी संग्रह
तिस्मि
उपन्यास – मैं, मैं और केवल मैं ।
सम्मान-काका हाथरसी पुरस्कार।
श्री महाभारत हिन्दी साहित्य समिति इंदौर द्वारा *सारस्वत मार्तण्ड’ की उपाधि परिवार पुरस्कार से सम्मानित |
भाषा – ब्रजभाषा, खड़ीबोली, संस्कृति।
इनकी कहानियों पर आधारित लापतागंज धारावाहिक भी बनाया गया है।
धारावाहिक लेखन- ये जो है जिंदगी, विक्रम बेताल, सिंहासन बत्तीसी, प्याले में तूफान, दाने अनार के, ये दनिया गूजब की।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के साहित्यकारों मे और कई साहित्यकार हुए जिनमे
मालती जोशी
चंद्रकांत देवताले
अमृतलाल वेगड़
महाकवि बैरागी
कवि प्रदीप
राजकुमार वर्मा
ईसुरी
संत सिंगाजी
यह article मध्य प्रदेश के साहित्यकारों के बारे सम्पूर्ण जानकारी देने के लिया बनाया गया है। इस article मे मध्य प्रदेश के इतिहास से संबंधित बहुत सारी books से content लिया है। यह article मध्य प्रदेश से संबंधित सभी books का निचोड़ है। जिसमें आपको मध्य प्रदेश के साहित्यकारों के बारे मे सामान्य जानकारी उनकी कृतियां सब पुरस्कार एवं सम्मान मध्य प्रदेश के साहित्यकारों को दिए गए हैं सब कुछ बताया गया है इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद कमेंट बॉक्स में अपना फीडबैक जरूर दें।