भारत में कर्नाटक युद्ध अंग्रेजो और फ़्रांसिसीयो के मध्य संघर्ष की कहानी बताता। भारत में अंग्रेजो और फ्रांसीसी के मध्य तीन प्रमुख युद्ध लड़े गए। जिसे कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है।
व्यापार से आरम्भ होकर अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी कम्पनियाँ भारत की राजनीति में अपरिहार्य रूप से उलझ गई। करीब 20 वर्षों तक चले इस लम्बे संघर्ष के फलस्वरूप भारत में फ़्रांसिसी शक्ति अंतिम रूप से टूट गई। इस संघर्ष ने सदा के लिए यह निर्णय कर दिया कि अंग्रेज ही भारत के स्वामी होंगे, फ्रांसीसी नहीं। इन कारणों से कर्नाटक के युद्धों का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है।
इस समय हैदराबाद में निजाम-उल-मुल्क आसफ जाह अर्द्ध- स्वतंत्र शासक था। कोरोमंडल तट और उसके पीछे की भूमि जिसे कर्नाटक कहा जाता था। मुगल दक्कन का एक सूबा था। यह निजाम के अधिकार के अंतर्गत आता था। जिस प्रकार निजाम व्यावहारिक रूप से दिल्ली की सरकार से स्वतंत्र हो गया था, उसी प्रकार कर्नाटक का नायब सुबेदार जिसे इस क्षेत्र का नवाब कहा जाता था। ने अपने को दक्कन के नवाब के नियंत्रण से मुक्त कर लिया था।
कर्नाटक के नवाब सआदत उल्ला खाँ ने अपने भतीजे दोस्त अली को निजाम की मंजूरी के बिना ही अपना उत्तराधिकारी घोषित करके अपने ओहदे को वंशानुगत बना दिया था। सन् 1741 ई० में मराठों ने कर्नाटक पर आक्रमण किया और यहाँ के शासक दोस्त अली को मार डाला एवं उसके दामाद चंदा साहब को बन्दी बना लिया। किसी भी शासक के अभाव में निजाम आसफजाह ने अपने निकट सम्बन्धी अनवरुद्दीन को कर्नाटक का नवाब बना दिया। 1741 ई० में कर्नाटक पर मराठा आक्रमण के बाद इस क्षेत्र में अव्यवस्था को स्थिति थी, फिर भी अंग्रेज और फ्रांसीसी शान्तिपूर्वक व्यापार में संलग्न रहे। यही नहीं, 1740 ई० में मेरिया थरेसा के उत्तराधिकार को लेकर (आस्ट्रियाई उत्तराधिकार के युद्ध में दोनों प्रतिद्वंद्वियों के भाग लेने के कारण) एवं अमेरिकी उपनिवेश के झगड़े को लेकर यूरोप मे अंग्रेजो और फ्रांसीसियों में युद्ध चल रहा था। फिर भी फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले ने भरव प्रें शान्ति बनाये रखने के उद्देश्य से ब्रिटिश अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित किया, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों द्वाय ऐसी किसी तटस्थता के बारे में कोई भी बातचीव नहीं की गई।
प्रथम कर्नाटक युद्ध ( 1746 -48 ईस्वी )
यह युद्ध आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध का विस्तार मात्र था। गृह सरकारों की आज्ञा के विरुद्ध ही दोनों दलों ने 1746 ईस्वी में युद्ध प्रारम्भ कर दिया। युद्ध की पहल अंग्रेजो की तरफ से हुई।
बारनैट के नेतत्व में अंग्रेजी नौसेना ने कुछ फ़्रान्सीसी जलपोत पकड़ लिए। डूप्ले ने कर्नाटक के नवाब से अपने जहाजों की सुरक्षा की प्रार्थना की। लेकिंन अंग्रेजों ने नवाब की किस बात पर गौर नहीं किया। परिणामस्वरूप डूप्ले ने मॉरीशस के फ्रांसीसी गवर्नर ला बुर्डोने से सहायता मांगी। ला बुर्डोने अपने 3000 सैनिकों के बेड़े के साथ कोरोमंडल तट पर पहुँच गया। और मद्रास पर अधिकार कर लिया। फ्रांसीसी ने भूमि और समुद्र दोनों में घेरा डाल दिया।
ला बुर्डोने का विचार अंग्रेजों से फिरौती लेने का था। उसने 40 हजार पौंड लेकर मद्रास अंग्रेजों को लौटा दिया लेकिन डूप्ले ने नगर को पुनः जीत लिया। फ्रांसीसी द्व्रारा मद्रास को घेर लिए जाने के बाद अंग्रेजों ने नवाब का संरक्षण चाहा। नवाब ने फ्रांसीसियों को मद्रास का घेरा उठा लेने को कहा , लेकिन डूप्ले ने कूटनीति का प्रयोग करते हुए कहा की वह मद्रास से अंग्रेजों को हटाकर नवाब को सौंप देगा नवाब को डूप्ले के कथन में शंका दिखाई दी। जिसके कारण युद्ध अवश्यंभावी हो गया।
द्वितीय कर्नाटक युद्ध ( 1749 -54 ईस्वी )
निजामुलमुल्क आशफजाह की मृत्यु 1748 ईस्वी में हो गई। जिससे उत्तराधिकार के लिए संघर्ष प्रारंभ हुआ। इसी समय चंदा साहब को मराठों द्वारा रिहा कर दिया गया।
निजाम का पुत्र नासिरजंग उसका उत्तराधिकारी बना परन्तु उसके भांजे मुज्ज्फ़रजंग ने उसके इस दावे को चुनौती दी। दूसरी ओर कर्नाटक के नवाब अल्बरूद्दीन तथा उनके बहनोई चंदा साहब के बीच विवाद प्रारम्भ हुआ। डूप्ले ने इस अनिश्चित अवस्था से राजनैतिक लाभ उठाने की सोची तथा मुजफ़रजंग को हैदराबाद का निजाम तथा चंदा साहब को कर्नाटक का नबाव बनाने के लिए अपनी सेनाओं द्वारा सहायता देने का वचन दिया।
तृतीय कर्नाटक युद्ध ( 1756 -63 ईस्वी)
अनुममर्थन दोनों देशों की सरकारों द्वारा किया जाना था। लेकिन इसी बीच 1756 ई० में यूरोप में सप्तवर्षीय यद्ध प्रारम्भ हो गया जिससे पुनः अंग्रेज और फ्रांसीसी एक-दूसरे के विरोध में आ गए तथा 1757 ई० में एक-दूसरे के स्थानों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। दक्षिण में फ्रांससियों ने त्रिचनापल्ली को लेने का असफल प्रयत्न किया। परन्तु कर्नाटक के अधिकांश भागों पर उनका अधिक हो गया। 1757 ई० में अंग्रेजों ने चंद्रनगर, बालासोर, कासिम बाजार तथा पटना की फ्रांसीसी फेक्ट्रियों पर अधिकार कर लिया
युद्ध का वास्तविक आरम्भ 1758, ई० में तब हुआ जब फ्रांसीसी सरकार ने काउंट डी लाली को भारत के सम्पूर्ण फ्रांससी प्रदशों के सैनिक एवं असैनिक अधिकारियों से युक्त अधिकारी नियुक्त किया। लाली ने 1758 ई० फोर्ट सेंट डेविड जीत लिया। इसके पश्चात मद्रास को घेर लिया, लेकिन अंग्रेजी नौसेना आने के कारण उसे घेरा उठाना पड़ा।
प्रथम कर्नाटक युद्ध की समाप्ति किस संधि से हुई
ए ला शापेल की संधि ( 1748 )
कर्नाटक युद्ध के कारण एवं परिणामों की विवेचना कीजिए
कर्नाटक युद्ध भारत में सस्ता को लेकर था अंग्रेजों और फ्रांसीसी के बीच युद्ध भारत में सत्ता की एक महत्व पूर्ण लड़ाई थी जिसमे फ्रांसिसी हर हार गए और भारत में अंग्रेजो का प्रभुत्त स्थापित हुआ और फ्रांसीसी भारत में केवल व्यापारी बन कर रह गए।
कर्नाटक युद्ध के क्या परिणाम हुए?
भारत में कर्नाटक युद्ध के परिणाम हुए की भारत अंग्रेजी शासन का प्रभुत्य कायम हुआ और फ्रांसीसी भारत में केवल व्यापारी बनकर ही रह गए।
कर्नाटक का प्रथम द्वितीय तृतीय युद्ध कब हुआ?
प्रथम कर्नाटक युद्ध ( 1746 -48 ईस्वी )
द्वितीय कर्नाटक युद्ध ( 1749 -54 ईस्वी )
तृतीय कर्नाटक युद्ध ( 1756 -63 ईस्वी)
तीसरा कर्नाटक युद्ध कब हुआ था?
तृतीय कर्नाटक युद्ध ( 1756 -63 ई)