कलचुरी राजवंश स्थापना से लेकर उनके पतन तक पूरी जानकारी (kalchuri vansh in Hindi)

कलचुरी राजवंश प्राचीन भारत का प्रसिद्ध राजवंश था कलचुरी वंश की स्थापना को कल प्रथम ने लगभग 845 ईसवी में की थी उसने त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया कलचुरी संभवत क्षत्रिय थे को कल ने प्रतिहार शासक बहुत एवं उसके सामंतों को युद्ध में पराजित किया था को कल के 18 पुत्रों में से उसका बड़ा पुत्र शंकरगढ़ द्वितीय अगला कलचुरी शासक बना गूगल के पुत्र शंकरगढ़ द्वितीय ने कौशल नरेश विक्रमादित्य को पराजित कर पाली नामक प्रदेश को जीत लिया शंकरगढ़ ने अपने छोटे भाई को इस प्रदेश में नियुक्त किया तथा कल चूड़ियों की प्रथम राजधानी तुम्हार तुम्माद की स्थापना की परंतु कलचुरी ज्यादा समय तक यहां शासन नहीं कर पाए उड़ीसा के रामपुर के सोमवंशी राजा द्वारा कल छोरियों को पराजित कर दिया गया लगभग 1000 ईसवी में लक्ष्मण राज के पुत्र कलिंग राज ने पुनः कलचुरी राजवंश की स्थापना की इसी कारण कलिंगराज कलचुरियों का वास्तविक संस्थापक माना जाता है

रतनगढ़ का कलचुरी राजवंश

बिलहरी (जबलपुर) अभिलेख से ज्ञात होता है कि को कल देव प्रथम के पुत्र शंकरगढ़ द्वितीय मुग्धतुंग लैला का भाग 900 ईस्वी में कौशल राजा को पराजित कर कौशल का प्रदेश छीन लिया था इसके पश्चात 950 ईसवी के आसपास सोमवंशी होने पुनः कौशल क्षेत्र पर अधिकार कर लिया तब त्रिपुरी के लक्ष्मण राज ने सेना भेजकर कौशल पर भयानक आक्रमण किया और क्षेत्र को पुनः विजित कर लिया कलचुरियों की वास्तविक सत्ता लगभग 1000 ईसवी में कलिंग राज द्वारा सम्मान में राजधानी बनाकर स्थापित की गई इसने 1020ईसवी तक शासन किया

कलचुरी राजवंश की रायपुर शाखा लूहरी शाखा

14वीं शताब्दी के अंतिम चरण में रतनपुर मैं कल चूड़ियों की एक शाखा रायपुर में स्थापित हुई इस शाखा के दो शिलालेख रायपुर और खल्लारी से प्राप्त हुए हैं रायपुर के कलचुरी की प्रथम राजधानी खल्लारी महासमुंद थी इस वंश के प्रसिद्ध शासक सिंघड़ देव ने 18 गुणों को जीता उसके बाद रामचंद्र देव ने अपने शासनकाल सन 1380 से 1480 तक रायपुर शहर का निर्माण कराया और अपने पुत्र ब्रह्मदेव राय के नाम पर रायपुर का नामांतरण किया रामचंद्र देव के बाद प्रसिद्ध कलचुरी शासक ब्रह्मदेव ने लगभग 14 से 9 ईसवी में कलचुरी यों की राजधानी खल्लारी से रायपुर स्थानांतरित की तथा प्रसिद्ध दूधाधारी मठ की स्थापना की इन्हीं के शासनकाल में देव पाल नामक मूचीले खल्लारी में शिव मंदिर का निर्माण कराया था

कलचुरी प्रशासन व्यवस्था

कल्याण सहाय के समय सूर्य वी सदी के मध्य की लेखा पुस्तिका को आधार मानकर श्री चेतन ने 1668 ईस्वी में कलचुरी शासन प्रबंधन पर एक लेख लिखा है जिससे कलचुरी कालीन प्रशासनिक एवं राजस्व व्यवस्था पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है अतः कलचुरी कालीन व्यवस्था को समझने के लिए निम्न व्यवस्था को समझना आवश्यक है

कलचुरी राजवंश की प्रशासनिक व्यवस्था

कलचुरी काल में राजतंत्र शासन पद्धति प्रचलित थी कार्य हेतु संस्कृत भाषा का उपयोग किया जाता था कलचुरी राजा धर्मपाल प्रजा वत्सल एवं लोक हितकारी शासक थे वे शासन की व्यवस्था हेतु मंत्रियों तथा अधिकारियों की नियुक्ति करते थे कलचुरी अभिलेखों से ज्ञात होता है कि राज्य अनेक प्रशासनिक इकाइयों में बटा हुआ था जिसे निम्न रूप से समझा जा सकता है

  • ग्राम – कलचुरी प्रशासन की सबसे छोटी इकाई
  • गोटिया – ग्राम का प्रमुख
  • बारहों तथा तालुका -12 गांव का समूह
  • दाऊ तथा तालुकाधिपति – 12 गांव की समूह का मुखिया
  • गढ़– 84 गांव का समूह
  • दीवान – गढ़ का मुखिया
  • जनपद या देश– 100000 गांव का समूह
  • महामंडलेश्वर – जनपद या देश का प्रमुख

कलचुरी राजवंश की स्थानीय प्रशासन

कलचुरी काल में स्थानीय कामकाज के संचालन हेतु नगरों और गांव में पंचकूला मक संस्था होती थी जिसमें 5 सदस्य होते थे कहीं-कहीं इनकी संख्या 10 भी होती थी जिसकी व्यवस्था और कान संचालन हेतु शासकीय अधिकारी होते थे जिसमें प्रमुख अधिकारी मुख्य पुलिस अधिकारी पटेल तहसीलदार लेखक शुल्क ग्राहक आदि छोटे-मोटे करो को उगाने वाला तथा प्रतिहारी आजाद सिपाही होते थे

कलचुरी राजवंश की आर्थिक व्यवस्था

कलचुरी कालीन आर्थिक स्थिति संपन्न व समृद्धि कृषि वनोपज खनिज आय के प्रमुख साधन थे भू राजस्व प्रणाली कर प्रशासन के आर्थिक आधार तथा सिक्कों का प्रचलन हुआ वस्तु विनियम यहां के जनजीवन को प्रभावित कर रही थी कुटीर उद्योग वाणिज्य कर एवं यातायात के साधनों का विकास भी काल क्रमानुसार होता रहा इस काल में नगरों की अपेक्षा ग्रामों पर अधिक ध्यान दिया गया जिससे इनकी संख्या अधिक थी किंतु नए नगरों का निर्माण भी हो रहा था।

कलचुरी राजवंश की सामाजिक स्थिति

कलचुरी दरबार में पुरुषोत्तम तथा गंगाधर जैसे विद्वान मंत्री थे ग्रामदान केवल उन्हीं ब्राह्मणों को दिया जाता था जो कुल और ज्ञान के श्रेष्ठ होते थे व्यस्त व्यापार-व्यवसाय के साथ-साथ प्रशासन के उच्च पदों पर भी हसीन होते थे उदाहरण रतनपुर नगर का प्रधान सृष्टि व्यवस्था वेश्याओं के बाद कायस्थ जाति प्रभावशाली था कलचुरी प्रशस्ति के लेखक कायस्थ थे कायस्थ के बाद सूत्रधार जाति का उल्लेख है जो शिल्पकाला के प्रवीण थे कलचुरी कालीन समाज में महिलाओं की स्थिति उच्च स्थान पर थी देख कामकाज में भाग लेती थी

कलचुरी राजवंश की धार्मिक स्थिति

कलचुरी काल के शासक धर्मनिरपेक्ष थे जिन्होंने अपने शासनकाल में सब वैष्णव जैन बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया साथ ही प्रोत्साहित भी किया एवं सभी धर्मों से संबंधित अनेक मंदिरों धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया इसी काल में राज्यम के समीप चंपारण नामक स्थान पर 1593 में महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म हुआ वे शुद्धद्वैतवाद तथा पुष्टिमार्ग के संस्थापक थे रामानंद वैष्णव भक्ति को दक्षिण से उत्तर ले आया इसी परंपरा के अंतर्गत रायपुर का दूधाधारी मठ स्थापित हुआ

कलचुरी राजवंश की स्थापत्य कला

कलचुरी राजवंश की अनेक मंदिरों धर्मशाला में अध्ययन शालाओं और मठों का निर्माण करवाया किंतु अवशेष के रूप में केवल मंदिरों ताम पत्रों एवकल चूड़ियों की अनेक मंदिरों धर्मशाला में अध्ययन शालाओं और मठों का निर्माण करवाया किंतु अवशेष के रूप में केवल मंदिरों ताम पत्रों एवं उनके सिक्के ही बर्तमान में प्राप्त होती हैं कलचुरी स्थापित की एक स्वतंत्र से ली थी जिसका काल 1000 से 1400 भी निर्धारित किया गया कलचुरी शिल्प में मंदिर के द्वारों पर राजलक्ष्मी और शिव की मूर्ति पाई जाती थी गजलक्ष्मी कलचुरी वंश की कुलदेवी थी कल छोरियों के सिक्कों पर लक्ष्मी देवी अंकित होती थी तथा इनके ताम्रपत्र हमेशा ओम नमः शिवाय से आरंभ होता था

कलचुरी शासन का पतन

18 वीं शताब्दी में कलचुरी शासकों की सत्ता कमजोर होने लगी जिसके पीछे मोहन सिंह के संतों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा और इससे एक नवीन राजनीतिक शक्ति को उदय होने का अवसर मिला सन 17 से 48 ईसवी में भोसले शासक रघु जी तृतीय के सेनापति भास्कर पंत ने रतनपुर पर आक्रमण कर दिया तथा रघुनाथ सिंह को पराजित कर सकता प्राप्त की तत्पश्चात मराठों ने रायपुर से लुहरी शासक अमर सिंह को अपने अधीन किया और अपनी सत्ता स्थापित की।

इन्हे भी देखें –

पेप्सू कृषक आंदोलन क्या है। पेप्सु कृषक आंदोलन की सम्पूर्ण जानकारी (Pepsu farmers Movement 1939 in hindi )

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