inflation : मुद्रास्फीति की परिभाषा,प्रकार, रोकने के उपाय

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inflation मुद्रास्फीति की परिभाषा,प्रकार, रोकने के उपाय
inflation मुद्रास्फीति की परिभाषा,प्रकार, रोकने के उपाय

मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के त्रिक में से एक है | इसके दो तत्त्व “वृद्धि दर” और “विनयम दर” है महगाई किसी आम आदमी को प्रभावित करने वाली विदित सबसे बड़ी आर्थिक अवधारणा है | भारत ने मुद्रास्फीति एक बहुत बड़ा सवेदन सील मुद्दा है | जिसका मुआवजा काफी बार सरकारों को अपनी सत्ता से चुकाना पड़ा है महगाई के फलस्वरूप राज्य एवं केंद्र काफी हलचल सा माहौल बना रहता है | लेकिन आम इसके पीछे के विधमान कारको को नहीं समझ पाता और महगाई बढ़ने के कारण आम जनजीवन काफी प्रभावित होता है मुद्रास्फीति के प्रकार तथा उसके रोकने के उपाय क्या ही यह जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़े |

मुद्रास्फीति की परिभाषा (definition of inflation)

कई विद्वानों में मुद्रास्फीति को भिन्न भिन्न रूप से परिभाषित किया है | inflation की कुछ परिभाषा निम्न है |

” कीमतों के सामान्य स्तर में होने वाली लगातार वृद्धि “

“अर्थव्यवस्था के सामान्य स्तर में लगातार वृद्धि होना मुद्रास्फीति कहलाता है “

यह मुद्रास्फीति को लेकर कुछ किताबी परिभाषा है इनके अनुसार जब किसी एक चीज के दाम लगातार बढ़े तो यह मुद्रास्फीति नहीं है मुद्रास्फीति तब होती हैं जब बहुत सारी चीजों के दाम लगातार बढ़े हो या बढ़ते जा रहे हो।

मूल्यों की स्थिति मे आने वालीं गिरावट को अर्थशास्त्र मे दो तरह से difain किया जाता है

● अवस्फीति ( disinflation)

● अपस्फीति ( deflation)

लेकिन इन अवधारणा मे मूल्य हास को दो अलग स्थितियों मे दर्शाया जाता है। जहां अवस्फीति अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी होती हैं। तो वहीं अपस्फीति अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं मानी जाती। ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में रिसेशन या सुस्ती जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है

व्यावहार मे मुद्रास्फीति एक ही शब्द है। जो मूल्य स्तरों के बढ़ने या घटने की स्थिति को दर्शाने मे उपयोग किया जाता है। यदि मूल्यों का स्तर ऊपर गया तो मुद्रास्फीति बड़ी है और यदि मुल्य स्तर घटा है तो मुद्रास्फीति घटी है।

मुद्रास्फीति के प्रकार ( types of inflation )

मुद्रास्फीति को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है

● अल्प मुद्रास्फीति ( Low inflation)

● सरपट मुद्रास्फीति ( Galloping inflation)

● अति मुद्रास्फीति ( Hyperinflation )

अल्प मुद्रास्फीति ( Low inflation)

यह मुद्रास्फीति धीमी और आशानुरूप होती हैं। जिसे लघु क्रमिक या छोटा कहा जा सकता है। यह एक तुलनात्मक पद है

जिसका बिपरीत द्रुत ,तथा भविष्यवाणी न किए जाने योग्य मुद्रास्फीति है यह मुद्रास्फीति लंबी अवधि के बाद देखने को मिलती हैं। जो कि अंकों मे होती है। इस मुद्रास्फीति को सरकने योग मुद्रा स्थिति कहा जाता है

उदाहरण – किसी देश की मासिक मुद्रास्फीति दर 6 महीनों मे 2.3% ,2.6%, 2.7% , 2.9% , 3.1% , तथा 3.4% रही है तो यहां 6 महीनों मे परिवर्तन का परास 1.1% बैठता है।

सरपट मुद्रास्फीति ( Galloping inflation)

यह अत्यंत उच्च मुद्रास्फीति ( inflation) है। जो सामान्यता दो या तीन अंकों की हो सकती हैं। 1970 और 80 के दशक मे चिली अर्जेंटीना और ब्राजील जैसे देशों मे 50% से 70 % तक मुद्रास्फीति की दर हुआ करती थी। और 1980 के दशक के अंत से जब सोवियत संघ का विघटन हुआ उसके बाद रूसी अर्थव्यवस्था मे ऐसी ही उच्च मुद्रास्फीति दर देखी गई थी।

उस समय के समकालीन पत्रकारिता इस उछालने वालीं मुद्रास्फीति को उछाल मुद्रा स्थिति या दौड़ती हुई मुद्रा स्थिति भी कहा गया

अति मुद्रास्फीति ( Hyperinflation )

यह मुद्रास्फीति का रूप बहुत बड़ा है। जिसकी वार्षिक दर अरबों खरबों मे होती हैं। इस मुद्रास्फीति ना सिर्फ बढ़त बहुत बड़ी होती है बल्कि जल्दी भी हो जाती हैं। रातों रात ही मूल्यों अधिक वृद्धि हो जाती है

यह मुद्रास्फीति का सबसे अच्छा उदाहरण है अर्थशास्त्री इसकी शुरुआत 1920 के दशक से मानते हैं। इसकी शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी से मानी जाती है इसमे मुद्रास्फीति 1920 के बाद 1923 के अंत तक 36 अरब गुना ज्यादा हुई थी। इसमे मुद्रास्फीति इतनी अधिक थी इसमे जर्मनी के लोग अपनी मुद्रा का use मुद्रा के तौर पर नहीं बल्कि चूल्हा जलाने के लिए ईंधन के तौर पर करते तो धन की बचत होती 1985 मे बोलिविया और 1993 के युगोस्लाविया मे हुई मुद्रास्फीति अति मुद्रास्फीति के उदाहरण है।

मुद्रास्फीति के नियंत्रण के उपाय ( Measure to Check inflation)

मुद्रास्फीति आर्थिक एवं सामाजिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा है जिसके कारण हम देखते है की विस्व की सभी सरकारें मुद्रास्फीति को नियंतरण करने के लिए अथक प्रयास करती है मुद्रास्फीति को निंयत्रण करने के लिए निन्म कदम उठाए जाए तो सायद कहीं हद तक मुद्रास्फीति को रोक सकते है |

1 मांग पक्ष उपाय ( Demand side measure) :

मांग पक्ष उपाय के संबंध में 2 उपाय किए जा सकते हैं पहला तो उपभोक्ता से महंगे हो रहे उत्पादों को कम उपयोग में लाने की अपील की जा सकती है लेकिन क्या आपको लगता है की यह अपील विश्व में कहीं भी सफल हो रही है अब बात करते हैं दूसरों पर पर दूसरे उपाय के रूप में सरकार अर्थव्यवस्था में प्रवाहित मुद्रा के प्रवाह की मात्रा को कम करती है सरकारों का मौद्रिक उपाय कहा जाता है सरकारें आमतौर पर इसमें केंद्रीय बैंक मुद्रा की उपलब्धि को कम करती है या फिर ब्याज दरें बढ़ा दी है मुद्रा उपाय भी कारगर नहीं होता या फिर कम कारगर होता है क्योंकि यदि रोजमर्रा में उपयोग होने वाली वस्तुएं के दाम बढ़ेंगे तो जाहिर सी बात है की महंगाई बढ़ेगी क्योंकि उपयोग में होने वाली वस्तुएं कितनी भी महंगी हो जाए उनका इस्तेमाल होता ही है जैसे कि गेहूं चावल आलू प्याज टमाटर इत्यादि वस्तुओं यदि महंगी होती है तो उन का महंगा होना या तो कम उपज कारण हो सकता है या फिर इन वस्तुओं की मांग एकदम से बढ़ जाना मौद्रिक उपाय तो तब कार्यक्रम हो सकता है जब उदाहरण के लिए हम एक भवन निर्माण को लेते हैं यदि हम भवन निर्माण में इस्तेमाल होने वाली मुद्रास्फीति को रोकने के लिए भवन खरीदने के लिए मिलने वाले ऋण की ब्याज दरें बढ़ा दे तो हम कहेंगे यह मौद्रिक उपाय महंगाई रोकने में कारगर हो सकता है

अपूर्ति पक्ष उपाय ( supply side measure ) :

इस उपाय में सरकार है महंगाई के लिए जिम्मेदार उत्पादन का या तो उत्पादन बढ़ाए या फिर उनका आयात करें जिससे उन चीजों पर जो महंगाई बढ़ रही है उसको कम किया जा सके पर इस उपाय की भी कुछ सीमाएं हैं जहां हम इतनी छोटी अवधि में उत्पादन बढ़ाना संभव नहीं है वही आयात के लिए उपयुक्त समय पर पहुंचना काफी मुश्किल कार्य होता है लेकिन विरोधियों में इन उत्पादों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और इन चीजों को दूसरे देशों से भी आयात किया जा सकता है

लागत पक्ष उपाय ( Cost side measure) :

लागत पक्ष उपाय के अंतर्गत दो प्रकार की कदम उठा सकते हैं या तो हम कम अवधि में सरकार अप्रत्यक्ष करों की दरों को कम कर राहत दे लेकिन यह उपाय मुद्रा स्थिति के कारणों को तत्काल नियंत्रण ही कर पाता है जिस कारण सरकारें उत्पादन लागत को कम करने की दिशा में ही कार्य करती हैं.

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