ग्रीन हाउस प्रभाव एवं हरित गृह प्रभाव तथा ग्रीन हाउस प्रभाव के उत्तरदाई गैसें(greenhouse effect in hindi)

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हरित गृह जैसे जो वातावरण में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए लिए जिम्मेदार होती है इस प्रक्रिया के द्वारा पृथ्वी की सतह गरम अवं रहने योग्य बनती है। प्राकृतिक ग्रीन हाउस प्रभाव पृथ्वी को मध्य तापमान (15 c ) पर गर्म रखता है। ग्रीन हाउस गैसों की अनुपस्थिति में पृथ्वी का तापमान -20 C तक गिर सकता है। मानव जनित ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्राकतिक संतुलन को बिगाड़ता है। एवं तापमान में वृद्धि करता है वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की सांद्रता का बढ़ने से अवरक्त विकिरण ज्यादा अवशोषित होती है जिससे ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ता है।

ग्रीन हाउस प्रभाव के उत्तरदाई गैसें ( green house gases )

ग्रीन हाउस गैस का अर्थ वातावरण की उन गैसों से है जो प्राकृतिक एवं मानव जनित दोनों होती हैं। ये अवरक्‍त विकिरण को अवशोषित करती हैं एवं पुन: छोड़ती हैं।

जलवाष्प तथा co2 वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों में प्रचुर मात्रा मे पाई जाती है तथा किसी क्षेत्र में अवरक्त विकिरणों (12 से 20 um ) को ज़्यादा-से-ज्यादा अवशोषित करती हैं। इसके साथ अन्य प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें है

प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें

  • कार्बन डाइऑक्साइड
  • मीथेन
  • नाइट्रस ऑक्साइड
  • हाइड्रोप्लूरों कार्बन
  • परफ्लूरो कार्बन
  • सल्फर हेक्सा फ्लोराइड
  • जलवाष्प

कार्बन डाइऑक्साइड

कार्बन डाइऑक्साइड गैस वैश्विक तापन में 60% की भागीदारी करती है। यह एक प्राथमिक हरितगृह गैस है जो कि मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्सर्जित होती है। कार्बन डाइऑक्साइड की वातावरण में प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के कार्बन चक्र (कार्बन का वातावरण, समुद्र, मृदा वनस्पति एवं जीवों के बीच प्राकृतिक प्रवाह) के रूप में मोजूदगी रहती है। यह एक प्रमुख ताप अवशोषक गैस है। वातावरणीय कार्बन डाइऑक्साइड में कोई परिवर्तन वातावरण के तापमान को परिवर्तित कर सकता है।

मीथेन

वैश्विक तापन में यह गैस 20% का योगदान करती है। यह वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अपेक्षा काफी कम मात्रा में मौजूद होती है परंतु इसका महत्त्व अधिक है क्योंकि मीथेन पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित अवरक्त किरणों फे अवशोषण में (0, से औसतन 20 से 30 गुना ज़्यादा सक्षम है। मीथेन अपूर्ण अपघटन का उत्पाद है एवं ऑक्सीजन रहित दशाओं में मीथेनोजन जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होती है। मीठे जल वाली आर्द्रभूमि से मीथेन का उत्सर्जन होता है क्योंकि कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीजन के अभाव में अपघटन दने से मीथेन का उत्पादन होता है।

दीमक सेल्युलोज का पाचन करते हैं एवं इस क्रम में मीथेन का उत्पादन करते है। बाढग्रस्त धान के खेतों में तथा कच्छ क्षेत्रों में मीथेनोजत जीवाणुओं द्वारा अनॉक्सी क्रिया के फलस्वरूप मीथेन का उत्पादन होता है। चरने वाले जानवर, जैसे – गाय, बैल एवं भेड़ द्वारा भी मीथेन गैस उत्पन होता है। कोयला ख़नन एवं तेल तथा प्राकृतिक गैस हेतु खनन मीथेन उत्सर्जन के अन्य स्रोत हैं।

नाइट्स ऑक्साइड

नाइट्रस ऑक्साइड पृथ्वी के नाइट्रोजन चक्र के रूप में बातावरण में प्राकृतिक रूप से मौजूद रहती हैं। यह गैस वेश्विक तापन हेतु 6% ज़िम्मेदार है। नाइट्रस अक्साइड को लाफिंग गैस भी, कहा जाता है।

हाइड्रोफ्लूरो कार्बन

हाइड्रोफ्लूरो कार्बन (777८9) कक हाइड्रोफ्लूरोकार्बन को ओज़ोन विघटनकारी गैसों CFCs एवं HCFCs के प्रतिस्थापन के रूप में लाया गया था। हालाँकि, इस गैस द्वारा ओजोन का विघटन नहीं होता परंतु यह एक प्रबल हरित गृह गैस है एवं जलवायु परिवर्तन में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। चूँकि इसके द्वारा वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होती है। अत: इसे क्योटो प्रोयेकॉल द्वारा विनियमित किया जाता हे न कि मांट्रियल प्रोटोकॉल द्वारा। HFSc की दीर्घ वातावरणीय जीवन अवधि होती हैं एवं इसमें उच्च वैश्विक तापन क्षमता (GWPs) होती है।

ये शीतप्रशीतक, एरोसॉल नोदक, विलायक एवं अग्निशमन यंत्रों में प्रयोग किये जाते हैं।

परफ्लूरो कार्बन

परफ्लूरो कार्बन यौगिक विभिन्न ओद्योगिकी प्रक्रियाओं के सह-उत्पाद होते हैं जो एल्यूमिनियम उत्पादन एवं अद्धचालकों के निर्माण से जुड़े होते हैं।HFCs की तरह PFCs की भी दीर्घ वातावरणीय जीवन अवधि एवं उच्च वैश्विक तापन क्षमता होती है।

सल्फर हेक्सा फ्लोराइड SF6

SF6 मैग्नीशियम प्रक्रियाओं एवं अर्द्धचालकों के निर्माण में प्रयुक्त होती है। साथ यह रिसाव खोज हेतु प्रयोग में आने वाली खोजी गैस है। SF6 का उपयोग विद्युत वितरण उपकरणों,जिसमे सर्किट ब्रेकर भी आते हैं, में होता है। SF6 की वैश्विक तापन क्षमता 22,800 होती है जो इसे IPCC के अनुसार प्रबल ग्रीन हाउस गैस बनाता हे।

जलवाष्प

जलवाष्प वायुमंडल में सबसे अधिक परिवर्तनशील तथा असमान वितरण घटक हे। इसकी माजत्ना विभिन्‍न ऊँचाइयों पर भिन्‍न-भिन्‍न होती है। ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा घटती हे|| इसके अलावा निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर जाने पर भी इसमें कमी आती है। जलवाष्प सूर्यातप के कुछ अंश को ग्रहण कर धरातल पर उसकी मात्रा को कम करता है। यह पार्थिव विकिरण को अवशोषित कर CO2 की भांति ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करता है। मानव जलवाष्प उत्सर्जन हेतु प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेवार नहीं माने जाते हैं क्योंकि वे जलवाष्प की उतनी मात्रा उत्सर्जित नहीं करते जिससे वातावरण के सांद्रण में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो जाए। हालाँकि, वातावरण में जलवाष्प की मात्रा बढ़ने का कारण CO2 और अन्य हरित गृह गैसें भी हैं, जिनके कारण पौधो के वाष्पोत्सर्जन दर में तेज़ी आ जाती है। साथ ही CO2 की तरह जलवाष्प हवा में स्थायी नहीं रह सकती, क्योकि यह जलचक्र द्वारा जल भंडारों एवं वर्षा तथा हिम के रूप में परिवर्तित होती रहती है।

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