चिपको आंदोलन: इसकी शुरुआत एवं प्रभाव

0
34

चिपको आंदोलन पेड़ो की कटाई को रोकने के लिए किया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था आंदोलन के अंतर्गत 26 मार्च 1974 को उत्तराखंड (उस समय उत्तर प्रदेश का भाग) के बालों में शांत एवं अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया गया इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के लिए हो रही वनों की कटाई को रोकना था वनों की कटाई को रोकने के लिए अनेक लोग व्यक्तियों से चिपक कर खड़े हो गए

चिपको आंदोलन की शुरुआत

26 मार्च 1974 को शुरू किए गए इस आंदोलन का बड़ा कारण उत्तराखंड के रैणी गांव के जंगल के लगभग 25 तोपों को कटाई की नीलामी गौरा देवी और और अन्य महिलाओं ने नीलामी के खिलाफ विरोध किया ठेकेदार एवं सरकार के निर्णय में बदलाव ना आने पर महिलाएं पेड़ों को पकड़कर खड़ी हो गई जिसमें गोरा देवी समेत 21 और महिलाएं थी एवं अंत में वन्यजीव अधिकारियों ने गौरा देवी की बात मान ली और रानी गांव का जंगल नहीं काटा गया यहीं से आधुनिक चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई

यह आंदोलन सैकड़ों विकेंद्रित तथा स्थानीय स्फूर्ति प्रयासों का परिणाम था इस आंदोलन के जनक नेताओं में सुंदरलाल बहुगुणा गौरा देवी चंडी प्रसाद भट्ट तथा अन्य कार्यकर्ताओं में मुक्ता ग्रामीण महिलाएं शामिल थी जो जीवन यापन के साधन को बचाने के लिए तत्पर थी पर्यावरण विनाश के खिलाफ शांत और अहिंसक विरोध इस आंदोलन की प्रमुख विशेषता है

चिपको आंदोलन की प्रसंगिकता एवं प्रभाव

उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन ने वर्ष 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमाली वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी बाद के वर्षों में यह आंदोलन उत्तर मैं हिमालय प्रदेश दक्षिण में कर्नाटक पश्चिम में राजस्थान तथा पूर्व में बिहार और मध्य भारत में विंध्य तक फैला उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आंदोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा साथ ही यह लोगों की आवश्यकता और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत संसाधन नीति बनाने में भी सफल रहा

इन्हे भी देखें

जैव-विविधता: का संरक्षण, कारण, प्रकार, मापन, लाभ : (Bio-diversity : importance,…

स्वदेशी आंदोलन |स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव, महत्व ,असफलता के कारण swadeshi…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here