भारत में उद्योग (bhaarat mein udyog)

0
16
भारत में उद्योग (bhaarat mein udyog)
भारत में उद्योग (bhaarat mein udyog)

भारत में उद्योग भारत , भारत की आधारभूत संरचना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत का भौगोलिक स्टेक्चर के कारण यहाँ कई उद्योग का विकास हुआ है

सामान्य परिचय

मनुष्य का वस्तु निर्माण करने का कार्य उद्योग कहलाता है। उद्योग की इस प्रक्रिया में मनुष्य कच्चे माल का उपयोग कर श्रम, शक्ति व तकनीक के माध्यम से आवश्यकतानुरूप पक्का माल तैयार करता है। कच्चे माल के इसी रूपान्तरण से विभिन्‍न उपयोगी वस्तुएँ निर्मित होती हैं। जैसे – मिट्टी या धातु से बर्तन, गन्ने से गुड़ या चीनी आदि।

भारत में उद्योग, गृह उद्योग के रूप प्राचीन काल में भी विकसित अवस्था में थे। किन्तु अंग्रेजों के शासन काल में यह व्यवस्था ध्वस्त हो गई। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सन्‌ 1948 में भारत की औद्योगिक नीति घोषित की गई। फलतः उद्योगों को राजकीय और निजी क्षेत्रों में विकसित किया जाने लगा। उद्योगों के विकास हेतु औद्योगिक नीति में सरकार द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किए जाते रहे हैं। भारत की नवीनतम “उदारीकरण’” की आर्थिक नीति देश में देशी-विदेशी निवेशकों हेतु उद्योग लगाने के मार्ग खोल दिए हैं। फलत: बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की उद्योग जगत में सहभागिता बढ़ी है ओर भारत विश्व अर्थव्यवस्था में एक औद्योगिक देश के रूप में उभर रहा है। सूती वस्त्र के कुछ कारखानों में केवल सूत कातने का, कुछ में कपड़ा बुनने का, तथा कुछ में कातने व बुनने का कार्य होता है।

भारत में उद्योग स्थापना हेतु आवश्यक दशाएं


वर्तमान युग में औद्योगिक विकास पर ही आर्थिक विकास निर्भर है। आर्थिक विकास से मनुष्य के जीवन स्तर में सुधार होता है तथा राष्ट्र मजबूत होता है। हमारे देश में औद्योगिक विकास के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं

  • धरातलीय दशाएँ उद्योगों की स्थापना के अनुकूल है।
  • अधिकांश प्रदेशों में जलवायु दशाएँ सामान्य है।
  • . देश में सस्ता श्रम उपलब्ध है।
  • खनिज, वन व कृषि आधारित कच्चे माल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
  • परिवहन तन्‍त्र का फैलाव समुचित है।
  • सघन जनसंख्या होने से विशाल बाजार उपलब्ध हैं।

तकनीकी एवं पूँजी का अल्प विकास भारतीय औद्योगिक प्रगति की मुख्य बाधाएँ हैं। भारत सरकार औद्योगिक विकास की दिशा में सजग है तथा इसके लिए निरंतर सकारात्मक कदम उठा रही है।

भारत में उद्योगों का वर्गीकरण

स्वामित्व के आधार पर उद्योग चार प्रकार के होते हैं

  • निजी उद्योग – जो व्यक्तिगत स्वामित्त के होते है।
  • सरकारी उद्योग – जो सरकार के स्वामित्व के होते है।
  • सहकारी उद्योग – जो सहकारी स्वामित्व के होते है।
  • मिश्रित उद्योग – जो उपयुक्त में किन्ही दो या दो से अधिक के स्वामित्व में होते है।

उपयोगिता के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते है।

  • आधारभूत उद्योग – वे उद्योग जो अन्य उधोगो का आधार होते है इनके उत्पादन अन्य उधोगों के निर्माण तथा संचालन के काम आते है जैसे – लौह इस्पात उद्योग
  • उपभोक्ता उद्योग – वे उद्योग , जो लोगों की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के काम आते है। जैसे- वस्त्र, चीनी ,कागज आदि

आकार के आधार पर उद्योग चार प्रकार के होते है।

  • वृहद उद्योग – ओधोगिक इकाइयां , जिनमे पूंजी निवेश 10 करोड़ रूपए या उससे अधिक है। जैसे – टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी
  • माध्यम उद्योग – जिनमे कुल पूंजी निवेश 5 से 10 करोड़ रुपये के मध्य है जैसे – चमड़ा उद्योग
  • लघु उद्योग – जिनमे कुल पूंजी निवेश 2 से 5 करोड़ रूपए है जैसे- लाख उद्योग
  • कुटीर उद्योग – जिनमें पूंजी निवेश नाम मात्र का होता है। तथा जो परिवार के सदस्यों की सहायता से चलाये जाते है। ग्राम में स्थित होने पर यह ग्रामीण उद्योग तथा नगर में स्थित होने पर यह नगरीय कुटीर उद्योग कहलाते है।

कच्चे माल के आधार उद्योग तीन प्रकार के होते है।

  • कृषि आधारित उद्योग– जिन्हें कच्चा माल कृषि उत्पाद से प्राप्त होता हे, जैसे-सूती वस्त्र उद्योग
  • खनिज आधारित उद्योग – जिन्हें कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है, जेसे-लोह-इस्पात उद्योग।
  • वन आधारित उद्योग – जिन्हे कच्चा माल वनो से प्राप्त होता ही है।

भारत के महत्त्वपूर्ण उद्योग

लौह इस्पात उद्योग ( iron steel industry )

एल्युमीनियम उद्योग ( aluminium industry )

तांबा उद्योग ( cooper industry )

कागज उद्योग ( paper industry )

सूती वस्त्र उद्योग (cotton textile industry )

जूट वस्त्र उद्योग ( jute textile industry )

रेशमी वस्त्र उद्योग ( silk textile industry )

ऊनी वस्त्र उद्योग ( wool textile industry )

कालीन निर्माण उद्योग

सीमेंट उद्योग

कृत्रिम रेशमी वस्त्र उद्योग

ओधोगिक मशीनरी उद्योग

परिवहन उपकरण उद्योग

जलयान निर्माण उद्योग

भारत में उद्योगों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान

औधोगिक आयोग के अनुसार ईसा से पूर्व भी भारत एक औधोगिक देश था। भारत में निर्मित ,मलमल , रेशमी कपडा , आभूषण आदि। विदेशो को निर्यात किये जाते है परन्तु 18 शताव्दी के मध्य यूरोप में हुई औधोगिक क्रांति के फलस्वरूप यहाँ के परम्परागत कुटीर उधोगों को भारी हानि हुई। और भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यबस्था में उधोगों का स्थान सीमित हो गया। और भारतीय अर्थव्यबस्था कृषि प्रधान हो गई।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश के आर्थिक विकास हेतु औधोगिक विकास की आवश्यकता को महसूस किया गया सन 1950 में ” राष्ट्रीय योजना आयोग ” की स्थापना हुई। पंचवर्षीय योजनाओ के माध्यम से भारत के औधोगिक विकास हेतु चरणवद्ध लक्ष तय किये गए। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योग के बढ़ते योगदान से निम्नांकित उदेश्यो की पूर्ति सम्भव हुई।

1 . उधोगों से उत्पादन में वृद्धि होती है। जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। और जीवन उन्नत होता है

2 . रोजगार के साधनों में वृद्धि होती है। तथा मानव संसाधन का विकास होता है।

3 . राष्ट्रीय आय में बृद्धि तथा पूंजी का निर्माण होता है।

4 . उधोगों के बढ़ते योगदान से अर्थव्यवस्था के अन्य खंड कृषि खनिज परिवहन आदि में प्रगति होती है।

5 . संसाधनों को बल मिलता है तथा तकनीकी विकसित होती है।

राष्ट्रीय विनिर्माण नीति 2011

भारत की प्रथम विनिर्माण नीति 4 नवम्बर 2012 को सरकार द्वारा जारी की गई इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार है।

1 .थर्ष 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र द्वारा 100 मिलियन अतिरिक्त नौकरियों का सृजन किया जायेगा।

2 .खर्ष 2012 तक जी.डी.पी. में विनिर्माण क्षेत्र की अंशदान वर्तमान के 16% से बढ़कर 25% के स्तर तक ले जाना है।

3 .श्रम एवं पर्यावरण के नियमों को युक्त सहज और सरल बनाना है।

4 .ओद्योगिक इकाइयों से सम्बन्धित सभी मुद्दों के लिए एकल खिड़की मंजूरी ओर उच्च स्तरीय विनिर्माण उद्योग संवर्धन बोर्ड (MIPB) का गठन करना है।

5 .राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्रों (NIMZs) इनकी स्थापना और विकास क्षेत्रीय आधार पर विश्वसनीय बुनियादी सुविधाओं से युक्त ढांचे के साथ एक समेकित औद्योगिक टाउनशिप के रूप में किया जायेगा। इनका आकार कम से कम 5000 हेक्टेयर का होगा ओर इनके विकास तथा प्रबंधन के लिए विशेषताओं स्पेशल परपज वेहिकल्स (SPV) की स्थापना की जाएगी। प्रत्येक एस.पी.बी. NIMZs के विकास, उन्नयन, परिचालन और प्रबंधन का काम करेगी, सरकार पहला NIMZs राजस्थान के दिल्ली , मुम्बई, औद्योगिक गलियारे (DMIC) परियोजना के साथ स्थापित करने का निर्णय लिया है।

6 .इस क्षेत्र को बैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढाना और देश को विनिर्माण क्षेत्र का अंतर्राष्ट्रीय हब बनाना है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here