भारत चीन सीमा विवाद : भारत और चीन मध्य संबंध आजादी से लेकर अब तक (bhaarat cheen seema vivaad in Hindi)

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भारत चीन सीमा विवाद : भारत की विदेश नीति में चीन के साथ संबंधों का एक महत्वपूर्ण स्थान है जिस समय भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई और समय चीन मे भयंकर ग्रह युद्ध चल रहा था इधर भारत की भी अपनी अनेक समस्याएं थी जो देश के विभाजन से उत्पन्न हुई थी साम्राज्यवाद के विरुद्ध चीन की संगत के प्रति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रारंभ से ही सहानुभूति रखता था इसने तीस के दशक में एक मेडिकल मिशन इन भेजा था जापान द्वारा चीन के मंचूरिया प्रांत पर जब 1931 में आक्रमण किया गया तब भारत के राष्ट्रपतियों ने न केवल चीन दिवस मनाया बल्कि जापानी वस्तुओं का बहिष्कार भी किया चीनी चल गणतंत्र को 1 जनवरी 1950 ईस्वी को मान्यता देने वाला प्रथम देश भारत था नेहरू ने सुरक्षा परिषद में कम्युनिस्ट चीन को उचित स्थान दिलवाने का प्रयास किया उन्होंने कोरियाई युद्ध में अमेरिकी स्थिति का समर्थन नहीं किया और कोरिया से समझौता करवाने की पूरी कोशिश की

1950 ईस्वी में जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया तब भारत ने इस बात पर विरोध किया कि उससे विश्वास में नहीं लिया गया लेकिन भारत ने तिब्बत पर चीन के अधिकार को मान्यता दी क्योंकि इसके पहले भी वह चीन का अंग रह चुका था 1954 में भारत और चीन एक संधि पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत भारत ने तिब्बत पर चीन के अधिकार को स्वीकार किया दोनों देशों ने पंचशील के आधार पर आपसी संबंध नियमित करना तय किया इमारतें करने संबंधी मतभेदों पर विचार किया गया लेकिन चीन का कहना था कि उसने अभी पुराने कुओंमींतांग नक्शे का अध्ययन नहीं किया है इस पर बाद में विचार किया जा सकता है 1955 में भारत ने बोर्डग सम्मेलन में हुई अफ्रीकी एशियाई कॉन्फ्रेंस में चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई को समर्थन देकर अपने मित्रता के हाथ को आमतौर पर लंबा कर दिया

1959 ईस्वी में भारत चीन संबंध में अधिक कड़वाहट तब आई जब तिब्बत के धार्मिक गुरु दलाई लामा ने जिनका हिंदू भी आदर करते हैं चीनी व्यवहार से दुखी होकर तिब्बत से भागकर भारत में शरण ली अंतर्राष्ट्रीय विधि वित्त आयोग ने भी यह निर्णय लिया कि चीनी दलाई लामा के साथ क्रूरता से विवाह करते थे भारत सरकार ने दलाई लामा को शरण तो दी परंतु भारत ने तिब्बत की प्रभासी सरकार बनाने की अनुमति नहीं दी चीनी अधिकारियों ने दलाई लामा को शरण देने पर आपत्ति जताई और बदले में लद्दाख में को गांव का दर्रे में अक्टूबर 1959 ईस्वी में भारतीय सुरक्षा दल पर गोलियां चलाई जिसमें 5 भारतीय पुलिस वाले मारे गए और एक दर्जन गिरफ्तार कर लिए गये जब भारत ने इस पर विरोध जताया तो चीन ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया भारतीय बुद्धिजीवियों ने पंडित नेहरू को कहा कि वह कड़ा रुख अपनाएं परंतु नेहरू का विचार था के झगड़े को सीमित रखा जाए और चीन से मित्रता बनाई रखी जाए

इन्हे भी देखें –पेप्सू कृषक आंदोलन क्या है। पेप्सु कृषक आंदोलन की सम्पूर्ण जानकारी (Pepsu farmers Movement 1939 in hindi )

भारत चीन सीमा विवाद

भारत और चीन के बीच लगभग 2000 मील की एक लंबी सीमा है इस सीमा रेखा को समझो तो तथा प्रकाश की व्यवस्थाओं से नियमित किया गया था इसके आजाद भारत चीन प्राकृतिक सीमा रेखा भी इतनी स्पष्ट है कि दोनों देशों की वास्तविक सीमाओं के विषय में किसी को संखा हो ही नहीं सकती भारत चीन सीमा को सामान्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • भूटान के पूर्व की सीमा
  • उत्तर प्रदेश पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश से लगती मध्य सीमा
  • चीन के तिब्बत एवं शियांग प्रदेशों से जम्मू कश्मीर को पृथक करने वाली पश्चिमी सीमा

भारत चीन सीमा विवाद मुख्य रूप से उत्तर पूर्व में मैक मोहन रेखा तथा उत्तर पश्चिम में लद्दाख से संबंधित है

मैकमोहन रेखा

यह रेखा उत्तर पूर्व में भारत चीन सीमा का विभाजन करती है यह भूटान के पूर्व में दोनों देशों की सीमा रेखा है भारत ने सदैव ही इस रेखा को पर रूप से निर्धारित सीमा रेखा माना है परंतु चीन ने सदा इसकी साम्राज्यवादी देखा कहकर निंदा की है सन 1914 ईस्वी में शिमला में हुए ब्रिटिश भारत चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में एक सीमा रेखा निर्धारित कर के उत्तर एक रूप से सीमा विभाजन किया गया था शिमला सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व टेस्ट मंत्रिमंडल के 84 हेनरी मैकमोहन ने किया था वह भारत के मंत्री थे मैक मोहन मानचित्र पर लाल पेंसिल से एक रेखा खींचकर राजन किया यह एक प्रकार के प्राकृतिक सीमा रेखा भी है

लद्दाख

लद्दाख सदा से जम्मू कश्मीर राज्य का अंग रहा है और आज भी है इस क्षेत्र में लद्दाख चीन सीमा किसी संधि के द्वारा निर्धारित नहीं हुई थी फिर भी शताब्दियों से भारत और चीन दोनों इस क्षेत्र की सीमा रेखा को मानती रहे थे भारत द्वारा 18 से 99 ईसवी में चीन को भेजे गए एक पत्र में स्पष्ट कर दिया गया था कि अक्साई चीन भारतीय प्रदेश का भाग था जम्मू कश्मीर राज्य के राजस्व अभिलेखों में भी रखता है जिनमें को कश्मीर के लद्दाख प्रांत का भाग स्वीकार किया गया था

भारत-चीन सीमा विवाद का आरंभ

चीन द्वारा 1956 सत्तावन ईसवी में अक्साई चिन क्षेत्र से निकलती एक सड़क का निर्माण किया गया इस सड़क का उद्देश्य था कि चीन से पश्चिमी तिब्बत जाने वाले लोगों को आवागमन की सुविधा प्राप्त हो सके भारत के इस प्रदेश में चीनी अधिकारियों ने एक भारतीय सुरक्षा टुकड़ी को 1998 बंदी बना लिया
अक्टूबर 1954 ईस्वी में जब पंडित नेहरू चीन की यात्रा पर गए और बाराहुती के प्रश्न की ओर चाउ एन लाई का ध्यान आकर्षित किया तक चीन के प्रधानमंत्री ने इसे साधारण घटना कह कर टाल दिया

1958 ईस्वी में चीन के एक प्रकाशन चाइना विक्टोरियन में प्रकाशित उनके मानचित्र में भारत के कुछ प्रदेशों को चीन के भाग के रूप में दिखाया गया इस मानचित्र में उत्तर पूर्व के लगभग 36000 वर्ग मील भारतीय प्रदेश को और उत्तर पश्चिम के लगभग 12000 वर्ग मील प्रदेश चीन के भाग के रूप में दर्शाया गया 23 जनवरी 1959 ईस्वी को चालू एन लाई ने एक पत्र लिखकर पहली बार भारत के हजारों वर्ग मील प्रदेशों पर अपना दावा प्रस्तुत किया तब भारत आश्चर्यचकित रह गया चीन के प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत चीन सीमा को कभी भी औपचारिक रूप से निर्धारित नहीं किया गया मैक मोहन रेखा चीन की तिब्बत क्षेत्र के विरुद्ध आक्रमण की ब्रिटिश नीति की उपस्थिति मैक मोहन रेखा को अवैध मानता है

जुलाई 1959 ईस्वी में अक्साई चीन में भारत की एक टुकड़ी कुल लद्दाख के कोणार्क जिले में चीनी सेना ने आकर बंदी बना लिया अगस्त के आरंभ में चीन की सेना की एक टुकड़ी सीमा पार करके भारत के उत्तर पूर्वी सीमा एजेंसी एनएसए वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश में गोसाई अक्टूबर 1959 ईस्वी में चीनी सेनाओं ने भारत के नौजवानों की सीमा के इस ओर आ कर हत्या कर दी और 10 व्यक्तियों को बंदी बना लिया यह सब कुछ कॉन्गा दर्रे के निकट लगभग 50 मील भारतीय सीमा के अंदर हुआ था

चीन के प्रधानमंत्री ने 8 सितंबर 1959 ईस्वी को औपचारिक रूप से भारत के लगभग 50000 वर्ग मील के सफर अपना दावा प्रस्तुत किया गूंगा दर्रे की घटना ने भारत-चीन संबंधों को अत्यंत कटुता पूर्ण बना दिया और अप्रैल 1960 ईस्वी में प्रत्यक्ष बातचीत करके विवाद समाप्त करने का असफल प्रयास किया यह प्रयास दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा किया गया था तो प्रधानमंत्री स्तर की वार्ता के असफल होने के पश्चात दोनों देशों के अधिकारियों ने 1960 ईस्वी में ही बीजिंग नई दिल्ली और रंगून में तीन दौर की असफल वार्ता की

जनता की भावनाओं का आदर करते हुए नेहरू सरकार ने नीति परिवर्तन करके यह निश्चित किया कि भारत अपनी सीमा रेखा तक प्रभावी नियंत्रण स्थापित करेगा सीमा के साथ-साथ 1961 ईस्वी के अंत तक भारतीय सेना ने 50000 चौकियां स्थापित कर ली इस कार्य से चीन में तीव्र प्रतिक्रिया हुई और उसने भारत के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निर्णय लिया

मई 1962 ईस्वी में चीन ने पाकिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया इस प्रकार दो देश जो भारत के विरुद्ध विरोधी थे एक दूसरे के निकट आ गए और 12 जुलाई 1962 ईस्वी को लद्दाख की कलवान घाटी में स्थित भारत की एक पुलिस चौकी पर चीन ने कब्जा कर लिया और हमारी पुलिसकर्मियों को बंदी बना लिया गया उस समय भारत चीन युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका था तिब्बत को चीन में मिला लिया गया था दलाई लामा पलायन करके भारत आ गए थे पाकिस्तान की मैत्री हो चुकी थी ताइवान के संबंध में कोई मिनी कार्यवाही नहीं हो रही थी तो चीन 25000 वर्ग मील भारतीय प्रदेश पर अवैध अधिकार कर चुका था इस पृष्ठभूमि में सितंबर 1962 ईस्वी में चीन ने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया

इन्हे भी देखें – भारत का संवैधानिक विकास|1773 से 1947 ईस्वी तक | Constitution Development of India Hindi

भारत चीन सीमा युद्ध 1962 ई.

8 सितंबर 1962 ईस्वी को चीनी फौजों ने आगरा पहाड़ी पर हमला कर भारतीय फौजों को हटा दिया लेकिन इससे एक छोटी सी घटना मानकर छोड़ दिया गया नेहरू एक सम्मेलन के लिए लंदन चले गए और देश लौटने के बाद फिर 12 अक्टूबर को कोलंबो रवाना हो गए 1 सप्ताह बाद चीनी फौज ने बड़े पैमाने पर हमला बोल दिया और पूर्वी सेक्टर NEFA ( north eastern frontrier agency) जिसे बाद में अरुणाचल प्रदेश कहा जाने लगा का भारतीय कमांडर बिना किसी प्रतिरोध के भाग निकला पश्चिमी मोर्चे पर 20 अक्टूबर को चीनियों ने गलवान घाटी में 13 सीमावर्ती चौकियों पर कब्जा कर लिया और चुसूल हवाई पट्टी पर खतरा बढ़ गया समस्त भारत में भय का वातावरण बन गया और ऐसा लगता था कि चीनी आतम पर अधिकार कर अन्य भारतीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लेंगे नेहरू ने अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी को 9 नवंबर को जो पत्र लिखे जिसमे भारत चीन सीमा पर स्थिति को अत्यंत चिंताजनक बतलाया तथा सैनिक सहायता की मांग की उन्होंने इंग्लैंड की सरकार को भी सैनिक सहायता के लिए लिखा चीन ने 21 नवंबर 1962 ईस्वी को भारत के आक्रमण करने के पूर्व ही एकपक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी इसके साथ ही चीन ने एक दुई सूत्री योजना भी जिसमें दो प्रमुख बातें थी

चीन की सेना 7 नवंबर 1959 ईस्वी की वास्तविक नियंत्रण रेखा LOC से 20 किलोमीटर अपनी ओर हट जाएंगी चीनी सेनाओं के हटने से जो क्षेत्र खाली होगा उसमें चीन सरकार अपनी असैनिक चौकियां कायम करेगी

चीन ने भारत से इसे स्वीकार करने के लिए कहा कि भारत अपनी सेनाओं को भी 7 नवम्बर 1959 ईस्वी की रेखा से 20 किलोमीटर अपने ही क्षेत्र में और हटा लें।

भारत ने चीन की इस दूसरी घोषणा को अधिकृत करते हुए घोषित किया कि जब तक चीनी सेना 8 सितंबर 1962 ईस्वी तक की स्थिति को नहीं लौट जाती तब तक दोनों देशों के बीच कोई वार्ता संभव नहीं है यही वह देखा थी जिसके उत्तर में चीनी सेना आक्रमण से पहले स्थित जबकि चीन द्वारा बताई गई 7 नवंबर 1959 ईस्वी की वास्तविक नियंत्रण रेखा वह थी जहां तक आक्रमण के बाद भी चीनी फौज नहीं पहुंच पाई थीं

FAQ

भारत और चीन की सीमा लम्बाई कितनी है ?

भारत और चीन एक दूसरे से 4057 km की सीमा रेखा साझा करते है।

भारत का कौन सा हिस्सा चीन के पास है?

भारत का अक्साई चिन वाला भाग जो की जम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में स्थित है चीन के पास है।


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