hello दोस्तो आज हम जानेंगे कि भारत का महान्यायवादी क्या होता है। यह कैसे कार्य करता है ,कौन नियुक्त करता है ,भारत के महान्यायवादी को भारतीय संविधान में क्या क्या शक्तियाँ दी गई है। और अभी तक कौन-कौन भारत के महान्यायवादी रह चुके है जानेंगे सब कुछ इस आर्टिकल में।
भारतीय संविधान और भारत का महान्यायवादी
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 में महान्यायवादी पद की व्यवस्था की गई है। यह देश का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है। गौरतलब है कि विधि अधिकारी पद की परिभाषा “विधि अधिकारी (नियम एवं शर्ते) नियमावली, 1987′ में दी गई है। इस अधिनियम के तहत तीन अधिकारियों को विधि अधिकारी माना गया है। ये तीन अधिकारी हैं
- भारत का महान्यायवादी
- भारत का महाधिवक्ता तथा
- भारत के अपर महाधिवक्ता
उपरोक्त वर्णित तीनों अधिकारियों में महान्यायवादी सर्वोच्च स्तर पर है।
भारत के महान्यायवादी नियुक्ति एवं योग्यताएँ (appointment and qualifications)
महान्यायवादी की नियुक्ति के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 76(1) में कहा गया है कि “राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये अर्ह किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा” इससे स्पष्ट हे कि महान्यायवादी के लिये उन योग्यताओं का होना आवश्यक है जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये होती है।
उसे भारत का नागरिक होने के साथ-साथ निम्नलिखित तीन में से एक योग्यता धारण करनी चाहिये
- उसे उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का कम से कम प्रॉँच वर्षों का अनुभव हो।
- या किसी उच्च न्यायालय में दस वर्षों तक वकालत करने का अनुभव हो।
- या किसी उच्च न्यायालय में दस वर्षों तक वकालत करने का अनुभव हो।
भारत के महान्यायवादी की पदावधि परिलब्धियाँ ( term and enoluments )
महान्यायवादी की पदावधि और परिलब्धियों के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 76(4) में उल्लेख है कि वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत पद पर रहेगा और ऐसा पारिश्रमिक ग्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति उसके लिये निर्धारित करें। अर्थात् महान्यायवादी का पद निश्चित नहीं है। उसे राष्ट्रपति जब चाहे तब पद से हटा सकता है। लेकिन यहाँ राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत होने का व्यावहारिक अर्थ मंत्रिपरिषद के प्रसादपर्यंत होने से है क्योंकि उसकसं पदावधि के संबंध में निर्णय करना राष्ट्रपति का विवेकाधिकार नहीं है। मगर उसकी सेवा शर्तों से संबंधित 1987 के नियमों में यह ल्लेख है कि उसे हटाने के लिये कम से कम 3 महीने का अग्रिम नोटिस दियाजाना जरूरी है। इसके अतिरिक्त महान्यायवादी स्वयं पद छोड़ना चाहे तो कभी भी राष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा पदमुक्त हो सकता है।
1987 की नियमावली में महान्यायवादी की परिलब्धि भी बताई गई हैं। उसे निश्चित वेतन तो मिलता ही है।साथ ही प्रत्येक मामले में न्यायालय में पेश होने के लिये प्रत्येक पेशी के अनुसार अलग से भुगतान भी किया जाता है। इसकी दरें आदि 1987 को नियमावली में स्पष्ट की गई हैं।
भारत के महान्यायवादी के कार्य व दायित्व ( Functions and responsibilities )
संविधान के अनुच्छेद 76(2) में महान्यायवादी के कार्यों की संक्षिप्त चर्चा को गई है जो निम्न हैं
- भारत सरकार को विधि से संबंधित विषयों पर सलाह देगा।
- विधिक प्रकृति के ऐसे अन्य कार्य करेगा जो राष्ट्रपति उसे समय-समय पर सौंपें या निर्दिष्ट करें।
- उन कार्यो को करेगा जो संविधान या किसी प्रचलित विधि के तहत उसे सौंपे गए हों।
- यदि राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगा हो तो वह न्यायालय में सरकार का पक्ष प्रस्तुत करेगा।यह इसके अलावा अनुच्छेद 76 के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार महान्यायवादी भारत सरकार के विरुद्ध सवोच्च न्यायालय में लाए गए मामलों पर भारत सरकार की तरफ से न्यायालय में पक्ष रखेगा। उच्च न्यायालयों में भी भारत सरकार से संबंधित मामलों में उससे उपस्थित होने की अपेक्षा की जा सकती है।
भारत के महान्यायवादी की शक्तियाँ (powers)
संविधान के अनुच्छेद 76(3) के अनुसार महान्यायवादी को अपने कर्तव्य के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा। उसे संसद के किसी भी सदन या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक तथा संसद की किसी समिति, जिसका वह सदस्य है, की कार्यवाहियों में भाग लेने तथा बोलने का भी अधिकार दिया गया हे हॉलाकि उसे मत देने का अधिकार नहीं है (अनुच्छेद 88)। उसे अपने कार्यकाल के दौरान संसद सदस्यों को प्राप्त होने वाले सभी विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ भी प्राप्त होते है। [अनुच्छेद 105(4)]
सीमाएँ (Limitations )
महान्यायवादी की निम्नलिखित सीमाएँ हैं ताकि उसके कर्तव्यों के तहत किसी तरह का संघर्ष या जटिलता न रहे
- वह भारत सरकार के खिलाफ कोई सलाह या विश्लेषण नहीं कर सकता।
- जिस मामले में उसे भारत सरकार की ओर से पेश होना है, वह उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है।
- बिना भारत सरकार की अनुमति के वह किसी आपराधिक मामले में व्यक्ति का बचाव नहीं कर सकता।
- बिना भारत सरकार की अनुमति के वह किसी परिषद या कंपनी के निदेशक का पद ग्रहण नहीं कर सकता।
हालाँकि महान्यायवादी सरकार का पूर्णकालिक वकील नहीं है, वह किसी कर्मी की श्रेणी में नहीं आता इसलिये उसे निजी विधिक कार्यवाही से रोका नहीं जा सकता है।
भारत के महान्यायवादियों की सूची ( List of Attorney General of India in Hindi )
क्रम | भारत के महान्यायवादी |
1 | एम सी सीतलवाड़ |
2 | सी के दप्तरी |
3 | निरेन दे |
4 | एस वी गुप्ते |
5 | यल एन सिंह |
6 | के परासरानी |
7 | सोली सोराबजी |
8 | जी. रामास्वामी |
9 | मिलन के बनर्जी |
10 | अशोक देसाई |
11 | सोली सोराबजी |
12 | मिलन के बनर्जी |
13 | गुलाम एस्साजी वाहनवती |
14 | मुकुल रोहतगी |
15 | के के बेणुगोपाल |
भारत के पहले अटॉर्नी जनरल कौन है?
के के बेणुगोपाल
महान्यायवादी का वेतन कहाँ से दिया जाता है?
भारत की संचित निधी से
महान्यायवादी का पद कहाँ से लिया है
भारत के महान्यायवादी ब्रिटेन से लिया गया है।
महान्यायवादी की नियुक्ति कौन करता है
भारत का राष्ट्रपति महान्यायवादी की नियुक्ति करता है।
महान्यायवादी का कार्यकाल कितना होता है
राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त
वर्तमान में भारत के महान्यायवादी कौन है
के के बेणुगोपाल
महान्यायवादी क्या होता है
भारत का महान्यायवादी मूलतः भारत सरकार का वकील होता है।
महान्यायवादी के कार्य
भारत सरकार को विधि से संबंधित विषयों पर सलाह देगा।
विधिक प्रकृति के ऐसे अन्य कार्य करेगा जो राष्ट्रपति उसे समय-समय पर सौंपें या निर्दिष्ट करें।
उन कार्यो को करेगा जो संविधान या किसी प्रचलित विधि के तहत उसे सौंपे गए हों।
यदि राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगा हो तो वह न्यायालय में सरकार का पक्ष प्रस्तुत करेगा।यह इसके अलावा अनुच्छेद 76 के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार महान्यायवादी भारत सरकार के विरुद्ध सवोच्च न्यायालय में लाए गए मामलों पर भारत सरकार की तरफ से न्यायालय में पक्ष रखेगा। उच्च न्यायालयों में भी भारत सरकार से संबंधित मामलों में उससे उपस्थित होने की अपेक्षा की जा सकती है।