चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना 1986 : ऊर्जा, चिकित्सा, कृषि आदि में उपयोगी परमाणु प्रौद्योगिकी कभी-कभी मानकजीवन के लिये अभिशाप बन जाती है और आधुनिक मानव के द्वारा किये गए नए-नए आविष्कारों से अर्जित अदभुद और अप्रत्याशित सफलताएँ भी उस वक्त बौनी साबित हो जाती हैं, जब विकास की यह तकनीक विनाश को जन्म देने लगती है। इसका एक सशक्त उदाहरण 26 अप्रैल, 1986 को घटी चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के रूप में लिया जा सकता है।
यूक्रेन में अवस्थित और रूस के नियंत्रण में कार्यरत चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र क्रमांक-4 में एक प्रयोग के तहत यह देखा जा रहा था कि यदि किसी कारणवश पूरे बिजलीघर में बिजली फेल हो जाएं और रिएक्टर को तुरंत बंद करना पड़े तो, उसे ठंडा करने के कूलिंग पंपों और तरह-तरह के मापन उपकरणों एवं भाप आपूर्ति के वंद हो जाने के बाद घूम रही टरबाइन बिना भाप के ओर कितनी देर तक विद्युत पैदा कर सकती है।
चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के प्रमुख कारण
- चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में नियंत्रक छड़ों को नीचे करके बनने वाली भाप को कम किया जा रहा था। लेकिन बिजली की कमी और श्रमिकों की पारी बदल जाने के कारण परीक्षण में देरी हो गई।
- बिजली का लगभग 700 मेगावाट स्तर बनाए रखने के लिये ऑपरेटर कंप्यूटर को प्रोग्राम करने में असफल रहे ओर आपूर्ति घटकर 20 मेगावाट रह गई।
- आपूर्ति को तत्काल बढ़ाना आवश्यक था इसलिये नियंत्रण छड़ें संयंत्र से बाहर कर ली गई। इस बीच ईंधन की छड़ों पर एक निष्क्रिय गैस (जेनान) जमा हो गई। इस गैस ने न्यूट्रानों को अवशोषित कर् लिया जिससे विद्युत में वृद्धि दर कम हो गई। फलस्वरूप और अधिक ऊर्जा पाने के प्रयास में ऑपरेटर ने सभी नियंत्रक़ छड़ों को बाहर कर लिया।
- मध्यरत्रि 1 बजे ऑपरेटरों ने आपात चेतावनी के लगभग सारे सिग्नल बंद कर दिये ओर परीक्षण होने के बाद संयंत्र को पर्याप्त ठंडा करने के लिये सभी पंप चला दिये।
- जब परीक्षण का आखिरी चरण चल रहा था ठीक उसी समय सिग्नल ने संयंत्र में अत्यधिक अभिक्रिया का संकेत दिया लेकिन ऑपरेटरों ने चेतावनी के बावजूद संयंत्र को स्वचालित ढंग से बंद नहीं होने दिया ओर परीक्षण शुरू कर दिया।
- परीक्षण के क्रम में हो संयंत्र का ऊर्जा उत्पादन सामान्य स्तर से ऊपर चला गया। जब तक ऑपरेटरों ने संयंत्र में वापस नियंत्रक छड़ें ले जाने वाली और विखंडन रोकने वाली आपात व्यवस्था शुरू की तब तक देर हो चुकी थी।
- संयंत्र का कोर (केंद्रीय भाग) खराब हो जाने के कारण विखंडन को रोका नहीं .जा सका, जिससे मात्र कुछ ही सेकंड में ऊर्जा का स्तर लगभग 2000 गुना बढ़ गया। ईंधन की नियंत्रक छड़े टूट गईं ओर शीतलन का पानी भाप बन गया।
- संयंत्र में भाप विस्फोट हुए जिससे 1000 मीट्रिक टन कौ कंक्रीट की छत उड॒ गई ओर संयंत्र में आग लग गई। रिएक्टर के चारों ओर कंक्रीट छत न होने के कारण रेडियोधर्मी मलबा वायुमंडल में फेल गया।
चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के प्रभाव
- इस घटना के कारण जो रेडियोधर्मी किरणें निकलीं वे हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका द्वारा गिराए गए परमाणु बम से लगभग 100 गुना अधिक थीं।
- रेडियोधर्मी पदार्थ के कण उत्तरी गोलार्द्ध के तकरीबन हर देश में पाए गए। इतना ही नहीं इस त्रासदी में लगभग 31 लोगों की मृत्यु हुई
- कुछ ही महीनों में रेडियोधर्मी संक्रमण के कारण थायराइड कैंसर जैसी गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न होने लगीं।
- फसल एवं माँसोत्पाद भी रेडियो संक्रमण से ग्रस्त हुए।
- जलीय जीव एवं मछलियाँ, घटनास्थल से लगभग 30 किमी. दूर तक पाए जाने वाले जंतु एवं पादप भी इस संक्रमण से प्रभावित हुए।
- इसके दीर्घकालिक प्रभाव अत्यंत विनाशकारी थे।
- इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी IAEA की एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 6,00,000 लोग तीव्र रेडियोधर्मिता क॑ शिकार हुए।
- विकिरण के अधिक संपर्क में आने के कारण लोगों को ल्यूकेमिया कैंसर और महिलाओं दो ब्रेस्ट कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा।
उपरोक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि चेरनोबिल में घटी परमाणु दुर्घटना एक भीषण दुर्घटना थी। यह मानव के स्वास्थ्य, शांतिप्रिय जीवन और पर्यावरण सुरक्षा के प्रतिकूल घटना थी। इस घटना ने सिद्ध किया कि जो यहाँ घटित हुआ, वह कहीं भी हो सकता हैं।
FAQ –
सबसे बड़ी नाभिकीय दुर्घटना कहाँ हुई थी?
चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना यूक्रेन
चेरनोबिल दुर्घटना का मुख्य कारण क्या है?
चेरनोबिल परमाणु संयंत्र में नियंत्रक छड़ों को नीचे करके बनने वाली भाप को कम किया जा रहा था। लेकिन बिजली की कमी और श्रमिकों की पारी बदल जाने के कारण परीक्षण में देरी हो गई।
बिजली का लगभग 700 मेगावाट स्तर बनाए रखने के लिये ऑपरेटर कंप्यूटर को प्रोग्राम करने में असफल रहे ओर आपूर्ति घटकर 20 मेगावाट रह गई।
आपूर्ति को तत्काल बढ़ाना आवश्यक था इसलिये नियंत्रण छड़ें संयंत्र से बाहर कर ली गई। इस बीच ईंधन की छड़ों पर एक निष्क्रिय गैस (जेनान) जमा हो गई। इस गैस ने न्यूट्रानों को अवशोषित कर् लिया जिससे विद्युत में वृद्धि दर कम हो गई। फलस्वरूप और अधिक ऊर्जा पाने के प्रयास में ऑपरेटर ने सभी नियंत्रक़ छड़ों को बाहर कर लिया।
मध्यरत्रि 1 बजे ऑपरेटरों ने आपात चेतावनी के लगभग सारे सिग्नल बंद कर दिये ओर परीक्षण होने के बाद संयंत्र को पर्याप्त ठंडा करने के लिये सभी पंप चला दिये।
जब परीक्षण का आखिरी चरण चल रहा था ठीक उसी समय सिग्नल ने संयंत्र में अत्यधिक अभिक्रिया का संकेत दिया लेकिन ऑपरेटरों ने चेतावनी के बावजूद संयंत्र को स्वचालित ढंग से बंद नहीं होने दिया ओर परीक्षण शुरू कर दिया।
चेर्नोबिल घटना कब हुई थी?
26 अप्रैल, 1986