विश्व की भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिनी जाने वाली भोपाल गैस त्रासदी एक भयानक मानव त्रासदी थी, जिसने मानव की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर न केवल प्रश्नचिह्न लगाया बल्कि मानव के भविष्य को सुरक्षित रखते वाले दावों को भी झूठा साबित कर दिया।
2-3 दिसंबर, 1984 की मध्यरात्रि को भोपाल (मध्य प्रदेश) शहर के समीप स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेडकी कीटनाशक फैक्ट्री से करीब 40 टन जहरीली गैस मिथाइल आइसोसायनाइट ,(मिक) का रिसाव होने के कारण समूचा भोपाल इस त्रासदी का शिकार हुआ, जिसे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है है।
भोपाल गैस त्रासदी के प्रमुख कारण
- टेंक ई 610 में आवश्यकता से अधिक गेस भरी हुई थी।
- गैस का तापमान भी निर्धारित 4.5 डिग्री की जगह 20 डिग्री था।
- 2-3 दिसंबर की रात्रि को टेंक ई 610 से पानी का रिसाव हो जाने के कारण मिथाइल आइसोसायनाइट गैस के पानी में मिल जाने से हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टेंक में ग्रीष्म दबाव पैदा हो गया।
- ग्रीष्म दबाव के कारण टैंक का तापमान लगभग 200 डिग्री के पार पहुँच गया, जिसक पश्चात् टैंक के सफ्टीवाल्व खुल जाने के कारण इस विषैली गैस का रिसाव वातावरण में हो गया।
भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव
- मिथाइल आइसोसायनेट गैस के वातावरण में मिश्रित हो जाने से लोगों को साँस लेने में कठिनाई होने लगी।
- आँखों, फेफडे, मस्तिष्क, माँसपेशियाँ ओर साथ ही तंत्रिका तंत्र, प्रजनन तंत्र एवं प्रतिरक्षा तंत्र पर इस विषैली गैस का दुष्प्रभाव हुआ।
- उस काल-कवलित रात्रि को संपूर्ण भोपाल एक गैस -चेंबर की भाँति हो गया था। इस त्रासदी का शिकार हुए वे लोग जो रोज़ी-रोटी की तलाश में दूर-दूर के गाँवों से आकर यहाँ बस गए थे।
- इस जहरीली गैस के प्रतिविष (एंटीडॉट) की जानकारी न होने के कारण लोग तड़प-तड़प कर मर गए।
- इस त्रासदी में 5,00,000 से भी ज़्यादा लोगों का शरीर पीडादायक घाव से ग्रस्त हो गया।
- इस त्रासदी में 10,000 से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। वर्तमान सरकारी आँकड़े इन मौतों को लगभग 2259 बताते हैं। जबकि मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने लगभग 3787 लोगों की मृत्यु की पुष्टि की थी।
- सेंटर फॉर साइंस एंवायरनमेंट द्वारा किये गए परीक्षण में इस बात की पुष्टि हुई कि फैक्ट्री ओर इसके आस-पास हजारों जानवरों ने प्राण त्याग दिये।
- पेड़-पौधों व मिट्टियों पर भी इसका प्रभाव पड़ा एवं फेक्ट्री के के 3 किमी. क्षेत्र के भू-जल में निर्धारित मानकों से लगभग 40 गुना अधिक जहरीले तत्त्व मौजूद पाए गए।
- उल्लेखनीय है इस त्रासदी का शिकार केवल बे लोग नहीं हुए जो घटना के दोरान भोपाल में थे बल्कि इस गैस का संक्रमण कई वर्षो तक जारी रहा, जिसका प्रभाव संभवत: आज भी है।
- भोपाल गैस त्रासदी में बची हुई गेस को समाप्त करने के लिये ऑपरेशन फेथ चलाया गया।
इसके जिम्मेदार लोगों को सज्ञा दिलवाने व घटना के कारणों की जाँच करने के लिये सरकार ने एन.के. सिंह की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग का गठन किया। लेकिन लापरवाह प्रशासन एवं सरकार के दुलमुल रवैये के चलते किसी भी ज़िम्मेदार व्यक्ति पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकी।
FAQ –
भोपाल गैस त्रासदी का कारण क्या था?
ans -टेंक ई 610 में आवश्यकता से अधिक गेस भरी हुई थी।
गैस का तापमान भी निर्धारित 4.5 डिग्री की जगह 20 डिग्री था।
2-3 दिसंबर की रात्रि को टेंक ई 610 से पानी का रिसाव हो जाने के कारण मिथाइल आइसोसायनाइट गैस के पानी में मिल जाने से हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टेंक में ग्रीष्म दबाव पैदा हो गया।
ग्रीष्म दबाव के कारण टैंक का तापमान लगभग 200 डिग्री के पार पहुँच गया, जिसक पश्चात् टैंक के सफ्टीवाल्व खुल जाने के कारण इस विषैली गैस का रिसाव वातावरण में हो गया।
भोपाल गैस कांड कब हुआ।
2-3 दिसंबर, 1984
भोपाल गैस कांड के समय प्रधानमंत्री कौन थे।
राजीव गाँधी
कांड समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कौन थे।
अर्जुन सिंह
भोपाल गैस कांड में कितने लोग मरे थे
इस त्रासदी में 10,000 से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। वर्तमान सरकारी आँकड़े इन मौतों को लगभग 2259 बताते हैं। जबकि मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने लगभग 3787 लोगों की मृत्यु की पुष्टि की थी।