पाल वंश की सम्पूर्ण जानकारी, स्थापना, सामाजिक, राजनैतिक एवं साहित्य

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पाल वंश की स्थापना संभव का 750 ईसवी के आसपास बंगाल में हुई थी शशांक की मृत्यु के पश्चात लगभग एक शताब्दी तक बंगाल में अराजकता और अर्व्यवस्था का माहौल बना हुआ था क्षेत्र में फैली अराजकता से तंग आकर वहां के लोगों ने गोपाल को शासक चना यह पहला राजा था जिसका जनता के द्वारा निर्वाचन हुआ उसने कौन में फिर से सुव्यवस्था स्थापित की तथा करीब दो दशकों तक शासन किया वह बौद्ध धर्म का अनुयाई था उसने उदंतपुरी और महाविहार की स्थापना भी की थी 770 ईसवी में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र धर्मपाल राजा बना

धर्मपाल ने बंगाल पर 770 से 810 ईसवी तक शासन किया उसने सर्वप्रथम राज्य का विस्तार किया कुछ समय के लिए उसने कन्नौज पर भी अपना अधिकार स्थापित किया था तथा उसने उत्तरापथस्वामिन की उपाधि धारण की वह बौद्ध धर्म का अनुयाई था किंतु वह अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु था बिहार और आधुनिक पूर्वी उत्तर प्रदेश पर अपना अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए पालो और प्रति हारों के मध्य संघर्ष चलता रहा यद्यपि बंगाल के साथ-साथ बिहार पर वालों का ही अधिक समय तक नियंत्रण कायम रहा

धर्मपाल का उत्तराधिकारी उसका पुत्र देवपाल अगला शासक बना देव पालने 1810 से 18 से 50 ईसवी तक शासन किया तथा इसने भी साम्राज्य विस्तार की नीति जारी रखी उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया तथा प्रयागज्योतिषपुर (असम) और उड़ीसा के कुछ हिस्सों को अपने साम्राज्य में मिला लिया संभवत आधुनिक नेपाल के एक हिस्से पर भी पाल प्रबुद्ध स्थापित हो गया तथा उसने तिब्बत तथा दक्षिण पूर्व एशिया के शैलेंद्र साम्राज्य से अपना सांस्कृतिक एवं व्यापारिक संबंध बनाए रखा सुमात्रा कि एक शासक बल पुत्र देव ने उसे नालंदा में 1 मठ की स्थापना की अनुमति भी प्राप्त की अरब यात्री सुलेमान ने देव पाल की शक्ति का वर्णन एवं राज्य विस्तार की जानकारी दी है देव पाल की मृत्यु के बाद पाल वंश का पतन शुरू हो गया उसके उत्तराधिकारी नारायण पाल को प्रतिहार शासक मेहर भोज तथा महेंद्र पाल के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा तथा उसने उनके हाथों मगध का क्षेत्र भी खो दिया उसके उत्तराधिकारी राज्यपाल ने राष्ट्रकूटा के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करके खोए हुए चित्र को पुनः प्राप्त किया

पाल वंश का पन आधार महिपाल के द्वारा हुआ किंतु चोल शासक राजेंद्र प्रथम के आक्रमण से राज्य को आर्थिक एवं सामाजिक क्षति उठानी पड़ी महिपाल का उत्तराधिकारी नेपाल था जिसने प्रारंभ में kalchuriyon से युद्ध किया किंतु बाद में कलचुरी राजकुमारी से विवाह कर लिया

नेपाल की मृत्यु के बाद अर्थव्यवस्था फैल गई जिसका अंत रामपाल ने किया उसने उत्तरी बंगाल असम उड़ीसा पर पुनः नियंत्रण स्थापित किया किंतु सेन शासकों के हाथों पूर्वी बंगाल तथा मिथिला को खो दिया संध्याकाल नदी के रामचरित का नायक वही है।

पाल वंश का अंतिम शासक गोविंद पाल था यह संभवत बख्तियार खिलजी के आक्रमण के समय बंगाल में शासन कर रहा था हालांकि यह नाम मात्र का शासक था तथा 12 वीं शताब्दी के अंत में बंगाल का पाल राज्य सेन वंश के अधिकार में चला गया

पाल कालीन संस्कृति ( culture of pala period )

पाल वंश की मूर्तिकला

पाल काल में कांस्य एवं प्रस्तर मूर्तिकला कि एक नवीन शैली का उदय हुआ। धीमन और विट्ठपाल ने मूर्तिकाल के क्षेत्र में अपना विशिष्ट योगदान दिया , जो धर्मपाल और देवपाल के समकालीन थे। इस समय की कांस्य मूर्तियां ढलवा किस्म की है। इसके साक्ष्य नालंदा तथा कुर्कीहार ( गया के निकट ) से मिले है। ये मूर्तियां मुख्य रूप से बुद्ध , बोधिसत्व , मंजुश्री , मैत्रेय , तथा तारा की है। हालाँकि इस काल की विष्णु , बलराम , सूर्य , उमा , महेश्वर , गणेश , आदि हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मिली है। बोधगया ने अवस्थित चतुर्भुज की मूर्ति धर्मपाल के शासनकाल में निर्मित हुई।

शिक्षा एवं साहित्य

पालवंशीय शासको ने नालंदा , विक्रमशिला , ओदंतपुरी , सोगपुरी आदि। में बौद्ध विहार एवं भवन बनवाए। गोपाल ने नालन्दा में बौद्ध बिहार बनवाया था। धर्मपाल ने विक्रमशिला और सोमपुर के विहारों की स्थापना तथा नालंदा महाविहार को 200 गांव दान दिए थे। पाल शासको ने तिव्वत , चीन और दक्षिण-पूर्वी एशिया के शैलेन्द्र राज्य से मित्रता की थी। बौद्ध विद्वान् अतीश दीपंकर ने तिब्बत जाकर वहाँ महायान मत का प्रचार-प्रसार किया। जीमूतवाहन (दायभाग) संध्याकर नदी (रामचरितम ) सर्वेश्वर ,आयुर्वेद में चक्रपाणि दत्त महत्वपूर्ण शिक्षाविद थे।

पाल कालीन स्थापत्य कला एवं चित्र कला

इस कला में वास्तुकला मुख्यता ईट पर आधारित थी। नालंदा विश्वविद्यालय ईटो से निर्मित है। बिहार एवं बंगाल में मिले अवशेषो में चैत्यो और विहारो के साथ-साथ तालाबों का भी निर्माण करवाया गया था।

इस काल के चित्र मुख्यतः ताड़ पत्र पर बने हुए है। इसमें काले , नीले ,लाल ,बैगनी ,तथा हल्के गुलाबी रंगों का प्रयोग हुआ है। पालकालीन चित्रकला पर तांत्रिक प्रभाव स्पष्तः परिलक्षित होता है। नालंदा से कुछ भित्ति-चित्र भी प्राप्त हुए थे।

इन्हे भी देखें

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